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________________ हिज जयं जई। काउस्सगं तओ कुज्जा, सबदुक्ख विमुक्खणं ॥९॥ देसियं च अईयारं, चिंतिज अणुपुश्वसो। नाणंमि दंसणे चेब, चरित्तंमि तहेव य॥१०३०॥ पारियकाउस्सम्गो, बंदित्ता य तओ गुरूं। देसियं तु अईयारं, आलोइज जहरूम ॥ १॥ पडिक्कमित्ताण निस्सडो, वंदित्ताण तओ गुरुं। काउस्सग्गं तओ कुजा, सबदुक्खविमुक्खणं ॥२॥ सिद्धार्ण संथर्व किच्चा, वंदित्ताण तओ गुरुं। थुइमंगलं च काऊणं, कालं संपडिलेहए ॥३॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तइयाए निदमुक्खं तु, चउत्थी भुजोवि सज्झायं ॥४॥ पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहए। सज्झायं तु तओ कुज्जा, अबोहंतो असंजए॥५॥ पोरिसीए चउब्भाए. बंदित्ताण तत्तो गुरुं। पडि. । काउस्सगं ती कुजा, सबदुक्खांवमुक्खणं ॥७॥राइय च अईयारं, चिंतिज अणुपुबसो। नाणंमि, सणंमी, चरितमि तवंमि य॥८॥ पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं। राईयं तु अईयारं, आलोइज जहक्कम ॥९॥ पडिक्कमित्तु निस्सल्डो, बंदित्ताण तओ गुरूं। काउस्सगं तओ कुजा, सबदुक्खविमुक्खणं ॥१०४०॥ किं तवं पडिक्जामि?,एवं तत्थ विचिं. तए। काउस्सम्गं तु पारिता, करिजा जिणसंथवं ॥१॥ पारियकाउस्सग्गो, बंदित्ताण तओ गुरूं। तवं संपडिवजित्ता, करिज सिद्धाण संथवं ॥२॥ एसा सामायारी, समासेण वियाहिया। जं चरित्ता बहू जीवा, तित्रा संसारसागर ॥१०४३॥ ति बेमि. सामायारीअज्झयणं २६॥ थेरे गणहरे गम्गे, मुणी आसि विसारए। आइने गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंधए॥४॥ वहणे वहमाणस्स, कंतारं अइवत्तए। जोए वहमाणस्स, संसारो अइवत्तए ॥५॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहंमाणे किलिस्सई। असमाहिं च वेएइ, तुत्तओ य से भज्जई ॥ ६॥ एग डसइ पुच्छंमि, एग विंधइऽभिक्खण। एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहपट्टिओ ॥७॥ एगो पडइ पासेणं, निवेसइ निविजई। उकुहइ उप्फिडाई, सढ़े बालगवी वए॥८॥माई मुद्दण पडइ, कुद्धे गच्छह पटियहं । मयलक्खेण चिट्ठाई, वेगेण य पहावई ॥९॥ छिन्चाले छिंदई सिलिं, दुईते भंजई जुर्ग। सेऽविय सुस्सुयाइत्ता, उजुहित्ता पलायई ॥१०५०॥ खलुंका जारिसा जुजा, दुस्सीसाविहु तारिसा। जोइया धम्मजाणंमि, भजंता घिइदुब्बला ॥१॥इड्ढीगारविए एगे, एगित्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥२॥ भिक्खाऽऽलसिए एगे एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एगं च अणुसासमी, हेऊहिं कारणेहि य ॥३॥ सोऽवि अंतरभासिडो, दोसमेत्र पकुबई (पभासइ)। आयरियाणं तं वयणं, पडिकूलेइ अभिक्खणं ॥४॥न सा मम वियाणाइ, नवि सा मज्झ दाहिई। निग्गया होहिई मन्ने, साहू अन्नोऽत्थ वचाउ ॥५॥ पे(पो)सिया पलि.उंचंति, ते परियंति समंतओ। रायविटुिं व मचंता, करिति भिउडि मुहे ॥६॥ वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेहिं पोसिया। जायपक्खा जहा हंसा, पकमंति दिसोदिसिं॥७॥ अह सारही विचिंतेइ, खलंकेहिं समा गए। किं मा दुट्टसीसेहिं?, अप्पा मे अवसीअई ॥८॥ जारिसा मम सीसा उ, तारिसा गलिगदहा। गलिगदहे चइताणं, दर्द पगिण्हइ तवं ॥९॥ मिउमहवसंपन्ने, गंभीर सुसमाहिए। विहइ महिं महापा, सीईभूएण अप्पणG॥१०६०॥ ति बेमि, खलुकिज २७॥ मुक्खमम्गगई तचं (त्यं), सुणेह जिणभासियं। चउकारणसंजुतं, नाणदसणलक्षणं ॥१॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्नं च तवो तहा। एस मरगुत्ति पन्नत्तो, जिणेहि वरदंसिहि ॥२॥ नाणं सच दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा। एयं मम्गमणप्पत्ता, जीवा गच्छति सुगई॥३॥ तत्थ पंचविहं नाणं, सब आभिणियोहिय। ओहियनाणं तइयं, मणनाणं च केवलं॥४॥एयं पंचविहं नाणं, दवाण यगणाण या पजवाणं च . सवेसिं, नाणं नाणीहि देसियं ॥ ५॥ गुणाणं आसओ दवं, एगदवस्सिया गुणा। लक्खणं पजवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे ॥६॥ धम्मो अधम्मो आगासं, कालो पुग्गल जंतवो। एस लोगुत्ति पनत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ ७॥ धम्मो अधम्मो आगासं, दवं इकिकमाहियं । अणंताणि य दवाणि, कालो पुग्गल जंतबो॥८॥ गइलक्षणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्षणो। भायणं सबदवाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥९॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओ. गलक्खणो। नाणेणं दसणेणं च, सुहेण य दुहेण य॥१०७०॥ नाणं च दंसर्ण चेव, चरितं च तबो तहा। वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥१॥ सधयार उज्जोओ, पभा छायाऽऽतवृत्ति वा। वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्ख ॥२॥ एगनं च पुहुतं च, संखा संठाणमेव य। संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं ॥३॥ जीवाऽजीवा य बंधो य, पुष्णं पावाऽऽसवा तहा। संवरो निजरा मुक्खो, संतेए नहिया नव ॥४॥ तहियाणं तु भावाणं, सम्भावे उवएसणं । भावेण सहहंतस्स. सम्मत्तं ति(त) वियाहियं ॥५॥ निसगुवएसरुई, आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई. किरियासंखेवधम्मरुई॥६॥ भूअत्येणाहिगया जीवाऽजीवा य पुण्ण पार्य च । सहसंमुइआ आसवसंवर रोएड उ निसम्गो ॥७॥ जो जिणदिटे भावे चउबिहे सहहाइ सयमेव । एमेव नऽनहत्तिय निसरगरुइत्ति नायबो॥८॥ एए चेव उ भावे उवइढे जो परेण सदइ । छउमत्येण जिणेण य उवएससहनि नायवो ॥९॥ रागो दोसो मोहो अजाणं जस्स अवगय होइ। आणाए रोयंतो सो खलु आणाईनाम ॥१०८०॥ जो सुत्तमहिनंतो सुएण ओगाहई उसम्मनं। अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तइति णायत्रो ॥॥ एगेण अणेगाई पयाईजो पसरई उ सम्मनं। उदया तिबिंदू सो बीयरुत्ति नायबो॥२॥ सो होइ अभिगमई सुअनाणं जस्स अस्थओ दिटुं। इकारस अंगाई पइण्णगं दिट्टिवाओ य ॥३॥ दवाण सवभावा सापमाणेहि जस्स उवलहा। सवाई नयविहीहि य वित्थारमहति नायवो ॥४॥दसणनाणचरिते तबविणए सचसमिइगुत्तीसु। जो किरियाभावरूई सोखलु किरियारूई नाम ॥५॥ अणभिग्गहियकुदिट्टी संखेवरुइत्ति होइनायत्रो। अविसारओ पवयणे अणभिम्गहिओय सेसेसु ॥६॥जो अस्थिकायधम्म सुयधम्म खलु चरित्तधम्म च । सदहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुद्धत्ति नायबो ॥ ७॥ परमत्थसंधवो वा सुदिट्ठपरमत्यसेवणा वावि। बावनकुदंसणवजणा य सम्मत्तसहहणा ॥८॥ नस्थि चरिनं सम्मनविहणं दंसणे उभइया । सम्मत्तचरित्नाई जगवं पुर्व वसम्मत्तं ॥९॥णादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुँति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मुक्खो नस्थि अमुक्खस्स निवाणं ॥१०९०॥ निस्संकिय निकंखिय निचितिगिच्छं अमूढदिट्टी य। उचवूह थिरीकरण वच्छल पभावणेऽद्रुते ॥१॥ सामाइयऽत्य पढमं छेदोवट्ठावणं भवे चितियं । परिहारविसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥२॥ अकसाय अहक्खायं, छउमत्थस्स जिणस्स बा। एवं चयरित्तकरं, चारित्नं होड आहियं ॥३॥ (३२२) १२८८ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्रं, असा -२० मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003945
Book TitleAagam Manjusha 43 Mulsuttam Mool 04 Uttarjjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages31
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size24 MB
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