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पावदिट्टी विण ॥ ७० ॥ परिकुवस्सयं लबुं कलाणं अदुव पावर्ग किमेगरायं करिस्सइ १, एवं तत्यऽहियासए ॥ १ ॥ अकोसेज परो भिक्खु, न तेसिं पर संजले सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २ ॥ सोचाणं फस्सा मासा, दारुणे गामकंटए। तुसिणीओ उवेक्खिजा, ण ताओ मणसीकरे ॥ ३ ॥ हओ ण संजले भिक्खू, मणपि णो पउस्सए । तितिक्खं परमं णच्चा, भिक्खुधम्मंमि चितए ॥ ४ ॥ समणं संजयं दंतं, हणिजा कोऽवि कत्यवि । नत्थि जीवस्स नामुत्ति, न य पेहे असाधुयं ( एवं पेहिज्ज संजतो ) ॥ ५ ॥ दुक खलु भो! णिचं, अणगारस्स भिक्खुणो। सङ्घ से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं ॥ ६ ॥ गोयरग्गपविट्ठस्स, हत्ये नो सुप्पसारए। सेजो अगारवासोत्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ७ ॥ परेसु गासमेसिज्जा, भोयणे परिणिट्टिए। लदे पिंडे आहारिजा, अलबे नाणुतप्पए (नाणुतप्पिज पंडिए) ॥ ८ ॥ अजेवाहं ण लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया। जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए ॥ ९ ॥ णच्चा उप्पइयं दुक्खं, बेदणाए दुहट्टिी(हि)ए। अदीणो ठावए पण्णं पुढो तस्थऽहियासए ॥ ८० ॥ तेगिच्छं नाभिनंदिना, संचिक्खऽत्तगवेसए। एयं खु तस्स सामण्णं, जं न कुजा न कारवे ॥ १ ॥ अचेलगस्स लुहस्स, संजयस्स तवरिसणो। तणेसु सुयमाणस्स, हुजा गायविराहणा ॥ २॥ आयवस्स निवाएणं, तिदु (अउ)ला हवइ वेयणा । एयं णच्चा न सेर्वति, तंतयं (तंतुजं) तणतजिया ॥३॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेणं व रण वा घिसु वा परितावेणं, सायं नो परिदेव ॥४॥ वेएज निजरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेओति, जलं कारण धारए ॥ ५॥ अभिवादणं अम्भुद्वाणं, सामी कुजा निमंतणं जे ताई पडिसेवंति न तेर्सि पीहए मुणी ॥ ६ ॥ अणुकसाई अपिच्छे अण्णाएसी अलोलुए। रसेसु नाणुगिज्झिना, नाणुतपिज पण्णवं ॥ ७ ॥ से नूणं मए पुर्व, कम्माऽणाणफला कडा जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्टो केणइ कण्डुई ॥ ८॥ अह पच्छा उइज्जति, कम्माऽणाणला कड़ा। एवमासासिजऽप्पाणं, णच्चा कम्मविवागयं ॥ ९ ॥ निरट्ठगं मि विरओ, मेहुणाओ सुसंबुडो जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कलाण पावगं ॥ ९० ॥ तवोवहाणमायाय, पडिमं पडिवज्जिया (जओ)। एवंपि मे विहरओ, छउमं ण णियदृति ॥ १ ॥ णत्थि पूर्ण परे लोए, इड्टी वाचि तवरिसणो अदुवा वंचिओ मित्ति, इइ भिक्खू ण चितए ॥ २ ॥ अभू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सइ। मुसं ते एवमाहंसु, इति भिक्खु न चितए ॥ ३ ॥ एए परीसहा सडे, कासत्रेण पवेइया । जे भिक्खु ण विहण्णिजा, पुट्टो केणइ कण्हुइ ॥ ९४ ॥ ि बेमि । परीसहज्झयणं २ ॥ चत्तारि परमंगाणि, दुलहाणिह जंतुणो । माणुसतं सुई सदा, संजमंमि ये वीरियं ॥ ९५ ॥ समावण्णाण संसारे, णाणागोत्तासु जाइसु । कम्मा णाणाविहा कटु, पुढो विस्संभिया पया ॥ ६ ॥ एगया देवलोंएस. नरएसुवि एगया। एगया आसुरे काये, आहाकम्मेहिं गच्छ ॥ ७॥ एगया खत्तिओ होइ, तओ चंडालबुकसो तओ की डपयंगो य, तओ कुंथू पिबीलिया ॥ ८ ॥ एवमावट्टजोणीसु, पाणिणो कम्मकिविता । ण णिविनंति संसारे, सङ्घट्टेस ( इ इ )व खत्तिया ॥ ९॥ कम्मसंगेहिं संमूढा, दुक्खिया बहुवेयणा। अमाणुसासु जोणीसु, विणिहम्मति पाणिणो ॥ १०० ॥ कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुत्री कथाइ उ जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययंति (जायन्ते) मणुस्सर्वं ॥ १ ॥ माणुस्सं विग्गल, सुती धम्मस्स दुलहा जं सोच्चा पडिवजंति, तवं संतिमहिंसयं ॥ २ ॥ आहच्च सवर्ण लदधुं सदा परमदुहा। सोच्चा णेयाउयं मग्गं, पहवे परिभस्सइ ॥ ३ ॥ सुई च लधुं सद्धं च वीरियं पुण दुलई । बहवे रोयमाणावि, णो य णं पडिवजइ ॥ ४ ॥ माणुसत्तमि आयाओ, जो धम्मं सोच सदहे। तबस्सी वीरियं लधुं संवुडो निधुणे रयं ॥ ५ ॥ सोही उज्जुभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिति णिवाणं परमं जाइ, घयसित्तेव पावए ॥ ६ ॥ विगिंच कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु संतिए। पाढवं सरीरं हिचा उर्दू पकमती दिसं ॥ ७ ॥ विसालिसेहिं सीलेहिं, जक्खा उत्तरउत्तरा महासुका व दिपंता, मन्त्रंता अपुणोश्चयं ॥ ८ ॥ अप्पिया देवकामार्ण, कामरूवविउडिणो उड़ढं कप्पेसु चिर्द्धति, पुवा वाससया बहू ॥ ९ ॥ तत्थ तिच्या जहा ठाणं, जक्खा आउक्साए चुया उवैति माणुस जोणि से दसंगेऽभिजाय ॥ ११० ॥ वित्तंवत्यु हिरण्णं च पसवो दासपोस्सं चत्तारि कामखंधाणि तत्थ से उपजइ ॥ १ ॥ मित्तवं नाइव होइ, उच्चागोत्ते य वण्णवं अप्पायंके महापसे, अभिजायजसोचले ॥ २ ॥ भोबा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं पुर्वि चिसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहि बुज्झिया ॥ ३ ॥ चउरंग दुलर्भ मच्चा, संजमं पडिवज्जिया तवसा धुतकम्मंसे, सिद्धे भवति सासए ॥ ४ ॥ चाउरंगिज्जज्झयणं ३ ॥ असंवयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नस्थि नाणं एवं (ण) वियाणाहि जणे पमत्ते, कन्नू विहिंसा अजया गहिंति ॥ ५ ॥ जे पावकम्मेहिं धणं मणुस्सा, समाययंनी अमति गहाय पहाय ते पासपयहिए नरे. वेराणुबद्धा नरयं उदेति ॥ ६ ॥ तेणे जहा संधिमुहे गहीए. सकम्मुणा किच्चइ पावकारी एवं पया पिच्छ (च) इहं च लोए, कडाण कम्माण न मोक्खो अस्थि ॥ ७॥ संसारमावन्न परस्स अड्डा, साहारणं जंच करेनि कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उर्वेति ॥ ८ ॥ वित्तेण ताणं न लमे पमत्ते, इममि लोए अदुवा परत्य दीवप्पणट्टे व अर्णतमोहे, नेयाउयं दमदमेव ॥ ९ ॥ (३१८) १२७२ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, अन्त्सरणे-४
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मुनि दीपरत्नसागर