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________________ बालजणस्स दूरा । सज्झायएगंतनिसे (निवेस)वणा य, सुत्तत्वसंचिंतणया चिई य ॥ ८॥आहारमिच्छे मियमेसणिज, सहायमिच्छे निउणत्यचुदि। निकेयमिच्छेज विवेगजोगं, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥९॥ न वा लभिजा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणओ समं वा। एगोवि पावाई विवजयंतो(अणायरंतो), विहरेज कामेसु असनमाणो॥ ११६०॥ जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हं. माहं च तव्हा. ययणं वयंनि ॥१॥ रागो य दोसोविय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति। कम्मंच जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥२॥ दुक्खं हर्य जस्स न होइ मोहो. मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न हो। लोभो, लोभो हओ जम्स न किंचणाई ॥३॥ रागं च दोसं च तहेव मोहं, उदनुकामेण समूलजालं। जे जे उचाया पडिवजियचा. ते कित्तइस्सामि अहाणुपुचि ॥४॥रसा पगाम नहु सेवियचा. पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दिन च कामा समभिवंनि, दुर्म जहा साउफलंब पक्खी ॥५॥ जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे, समारुओ नोत्रसमं उबेइ। एबिंदियम्गीवि पगामभोइणो, न भयारिस्स हियाय कस्सई ॥६॥ विवित्तसिजासगजंनियाणं. ओमासणाणं (E) दमिइंदियार्ण । न रागसत्तू घरिसद चित, पराइओ बाहिरिवोसहेहिं ।। ॥ जहा बिरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसस्था। एमव इ नजंपियं इंगिय पहियं वा । इन्धीण चित्तंसि निवेसइना, दटुं ववम्से समणे तवस्सी॥९॥ असणं चेव अपस्थणं च, अचितणं चेव अकित्तणं च। इत्थीजणस्सारियाणजुम्गं. हियं सया भवए स्याणं ॥११७०॥ कामं तु देवी| हिवि भूसियाहिं, न चाइया खोभइ तिगुना। नहावि एगनहियंनि नचा. विविनवासो मुणिणं पसत्थो ॥१॥ मुक्खाभिकंखिस्सवि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे। नेयारिस दुनरमस्थि लोए. जह स्थिओ बालमणोहराओ ॥२॥ एए य संगा समडकमिना, मुहतरा चेव हवंति सेसा। जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥३॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं खुदुक्खं, सबस्स टोगस्स सदेवगस्स। जं काइयं माणसियं च किंचि, तस्सतयं गच्छइ बीयरागो॥४॥ जहा य किंपागफन्ला मणोरमा, रसेण पनेण य भुजमाणा। ते सुदए जीविय पञ्चमाणा. एओवमा कामगुणा विवागे॥५॥जे इंदियाणं विसया मणुष्णा, नातेसु भार्च निसिरे कयाई। न या मणुन्नेसु मणंपि कुजा, समाहिकामे समणे नवम्सी ॥ ६॥ चक्षुम्स रुवं गहणं वयंति, नं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ७॥ रुवस्स चक्खं गहणं वयंति. चक्नुस्स रूवं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसम्स हेउं जमणुन्नमाहु ॥८॥ रूबेसु जो गिडिमुवेद तिवं, अकालियं पावइ सो विणासं । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोअलोले समुवेइ मच्चु ॥९॥ जे यावि दोस समुवेइ ति, तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुहनदोसेण सएण जंतू न किंचि सर्व अवरज्वाई से ॥११८०॥ एतरनो रुहरंसि रूये, अनालिसे से कुणई पओस । दुक्खस्स संपीलमुवेद पाले, न लिप्पई नेण मुणी चिरागे ॥१॥रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिं सयणेगरूवे। चिनहिने परियावेइ चारे, पीलेड अन्नद्गुरुः किलिट्टे ॥२॥ रुवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसंनिओगे। वए विओगे य कहं सुह से, संभोगकाले य अतिनलाभे ॥३॥ सवे अतिते य परिग्गहंमि, सत्तोवसनोन उबेइ नुदि। अनुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाषिले आययई अदनं ॥४॥ तण्हाभिभूयस्स अदनहारिणो, रुवे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा, नत्थावि दुक्खा न विमुबह से ॥५॥ मोसस्स पच्छा य परत्थओ य, पओगकालय दुही दुरंते। एवं अदनाणि समायअंतो, रुवे अतितो दुहओ अणिस्सो ॥ ६॥ रुवाणुरत्नस्स नरम्स एवं. कनो सुहं हुज्ज कयाइ किंचि ?। नत्थोवभोगेऽपि किलेसदुक्ख. निवत्नई जस्स कएण दुक्खं ॥७॥ एमेव रूबंमि गा पओसं. उबेइ दुक्खाहपरंपराओं। पद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होड दुहं विवागे ॥८॥रुचे चिरत्नो मणुआ विसागा, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिपपई भवमज्झेऽवि संतो, जलेणवा पुक्खरिणीपलासं ॥ ९॥ सोयम्स सदं गहर्ण०॥११९०॥ सहस्स सोयं गहणं०1०स वीयरागो ॥१॥ सहेसु जो मेहिमुवेइ०॥२॥जे यावि दोसः ॥३॥ एगेनरने रुइरंसि सहे०॥४॥ सदाणुगासाणु०॥५॥ सदाणुवाएण परिम्गहेण०॥६॥ सहे अतिते॥७॥ तण्हाभिभूयस्स०॥८॥ मोसस्स पच्छा य० ॥९॥ सदाणु० ॥१२००॥ एमेव सदमि० ॥१॥ सहे विरत्नो ॥२॥ घाणस्स गंध गहणं वयंनि ॥३॥ गंधस्स पाणं ॥४॥ गंधेसु जो गेहि रागाउरे ओसहिगंधगिडे, सप्पे चिलाओविव निक्खमंते ॥५॥जे यावि दोस०॥६॥ एगंतरत्तो रुदरंमि गंधे०॥७॥ गंधाणु०॥८॥ गन्धाणुवा॥९॥ गंधे अनित्ते० ॥१२१०॥ नण्हा ॥१॥ मोसम्सः ॥२॥ गंधाणु०॥३॥ एमेव गंधमि०॥४॥ गंधे विरत्तो०॥५॥ जिभाए रसं गहर्ण० ॥ ६॥ रसस्स जीहं गहणं वयंतिः ॥ ७॥ रसेम जो गेहि। रागाउरे बडिसविभिन्नकाए. मच्छे जहा आमिसभोगगिडे ॥८॥ गाथाः १३ ॥१२२८ ॥ कायस्स फार्स गहणं वयंति० ॥९॥ फासस्स कार्य गहणं० ॥१२३०॥ फासेसु जो गेहिमुनरागाउरे सीयजलायसन्ने, गाहम्गहीए महिसे व रन्ने ॥१॥ एवं फासाभिलावे गावाः १३ ॥१२४१॥ मणम्स भावं गहणं ॥२॥ भावम्स मणं ग० ॥३॥ भावेसु जो गेहि रागाउरे कामगुणेमु गिद्दे, | करेणुमम्गावहिएव नागे। भावामिलावे गावाः १३॥१२५४॥ एपिदियत्था यमणस्स अत्या. दुस्खस्स हेमणुयम्स रागिणो। ने चेव थेवपि कयाइ दुक्खं. न बीयरागम्स करिनि किचि ॥५॥ न कामभोगा समयं उचिंति, न यावि भोगा | चिगई उविति। जे तापोसी य परिगही य. सो तेशु मोहा विगई उबेइ ॥६॥ कोहं च माणं च नहेब मायं. लोभं दुगुठं अरई रईचा हासं भयं सोगपुमिन्यिपेयं, नपुंसपेयं विविहे य भावे ॥७॥ आवजई एक्मणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो। अन्ने य एयप्पभवे विसेसे. कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्सो ॥८॥ कप्पं न इच्छिन्न सहायलिच्छू. पच्छाणुनावण नवप्पभाचं । एवं विकारे अमियप्पयारे. आवनई इंदियचोरवस्से ॥९॥ नओ सि जायंनि पओअणाई, 13 निमजिउं मोहमहन्नवंमि। सुहेसिणो दुस्खविणोयणट्ठा, तप्पच्चयं उजमए अरागी ॥१२६०॥ बिरजमाणस्स य इंदियन्या. सदाइया नावइयप्पगारा।न नस्स संबंचिमणुन्नयं पा, निवत्तयंनी अमणुन्नयं वा ॥१॥ एवं ससं | कप्पविकप्पणासु, संजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्थं च संकप्पयओ तओ से, पहीयए कामगुणेसु तव्हा ॥२॥ सो बीयरागो कयसबकिचो, संवेइ नाणाचरणं खणणं । नहेब दरिसणमावरे, ज चनरायं पकरेइ कम्मं ॥३॥ (३२३) १२९२ उनराध्ययनानि मूलमूत्रं, अन्सा -३२ मुनि दीपरत्नसागर
SR No.003945
Book TitleAagam Manjusha 43 Mulsuttam Mool 04 Uttarjjhayanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages31
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size24 MB
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