________________
TONK
सबकामसमप्पिओ। कहं अणाहो भवई ?, मा हुभंते ! (भंते !मा हु) मुसं वए ॥३॥ न तुम जाणसि(णे अ) नाहस्स, अत्थं पुच्छ(त्य)च पस्थिवा!। जहा अणाहो भवई(सि), सणाहो वा नराहिव! ॥४॥ सुणेहि मे महारायं!, अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई, जहा मेज पवत्तियं ॥५॥ कोसंघीनाम नयरी, पुराणपुरभेयिणी (नगराण पुडभेयणी)। तत्थ आसी पिया मझ, पभूयधणसंचओ ॥६॥ पढमे वए महारार्य!, अउला मे अच्छिवेयणा । अहुत्या तिउलो दाहो, सवगत्तेसु पस्थिवा! ॥ ७॥ सत्थं जहा परमतिक्वं, सरीरविवरंतरे। पविसिज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥८॥ तिनं मे अंतरिच्छंच, उत्तिमंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥९॥ उव. ट्टिया मे आयरिया, विज्जामंतचिगिच्छगा। अबीआ सस्थकुसला (नानासत्यकुसला), मंतमूलविसारया ॥७२०॥ ते मे तिगिच्छ कुवंति, चाउप्पायं जहाहियं। न य मे दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया॥१॥पिया मे सबसारंपि, दिजाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोयेति, एसा मा अणाहया ॥२॥ माया (वि) मे महाराय !, पुत्तसोगदुहदिया। न य दुक्खा विमोयेति, एसा मज्झ अणाया ॥३॥ भायरा मे महाराय !, सगा जिद्रुकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया ॥४॥ भइणीओ मे महाराय !, सगा जिट्ठकणिट्ठगा। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥५॥ भारिया मे महाराय!, अणुरत्तमणुपया। अंसुपुनेहिं नयणेहि, उरं मे परिसिंचई ॥६॥ अर्ज पाणं च पहाणं च (तारिस रोगमावण्णे), गंधमल्लविलेवर्ण। मए नायमनायं वा,सावाला नोव जई॥७॥ खणंपि मे महाराय!, पासाओ
मल्लविलवणं। मए नायमनायं वा, सापाला नाव जई॥७॥ खणांप में महाराय!, पासाओविन फिट्टई। न य दुक्खा विमोएड. एसा मा अणाहया ॥८॥ तओऽहं एवमासु, दुक्खमाहु पुणो पुणो। बेयणा अणुहविउं जे, संसारंमि अणंतए ॥९॥ सयं च जइ मुंचिज्जा, वेयणा विउला इओ। खंतो दंतो निरारंभो, पाइए अणगारियं ।। ७३०॥ एवं व चिंतदत्ताणं, पासुत्तो मि नराहिवा!। परियत्ततीइ राईए, वेयणा मे खयं गया ॥१॥ तओ का पभायंमि, आउच्छिताण पंधवे। खंतो दंतो निरारंभो, पवइओ अणगारियं ॥२॥ ततोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो अ परस्स य। सधेसि चेव भूयाणं, तसाणं थावराण य ॥३॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदणं वर्ण ॥४॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियमुपट्टिओ ॥५॥ इमा हु अन्नावि अणाहया निवा !, तामेगचित्तो निहुओ मुणेहि मे। नियंठधम्म लहियाणवी जहा, सीयंति एगे बहुकायरा नरा॥६॥ जे पवइत्ताण महब्बयाई, सम्म (च)नो फासयई पमाया। अणिग्गहप्पा य रसेसु गिडे, न मूलओ जिंदा बंधणं से ॥७॥ आउनया जस्स य नस्थि कावि, इरियाइ भासाइ तहेसणाए। आयाणनिक्खेबदुगुंछणाए, न वीरजायं अणुजाइ मग ॥८॥ चिरंपि से मुंडई भवित्ता, अथिरखए तवनियमेहिं भट्टे। चिरपि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए॥९॥ पुढेव(पोडार) मुट्टी जह से असारे, अयंतिते कूडकहावणे य । राडामणी बेचलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएस ॥७४०॥ कुसीललिंग इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय वूहइत्ता। असंजए संजय लप्प(लाभ)माणे, विणिघायमागच्छइ से चिरपि ॥१॥ विसं तु पीयं जह कालकूड, हणाइ सत्यं जह कुम्गही। एमेव धम्मो विसओववो, हणाइ वेयाल इवाविवनो(पंधणो)॥२॥जो लक्वर्ण सुविण पउंजमाणो, निमित्तकोऊहलसंपगाढे। कुहेडविजासबदारजीवी, न गच्छई सरणं तंमि काले ॥३॥ तमंतमेणेव उसे असीले, सया दुही विपरियासुवेइ । संघावई नरगतिरिक्खजोणी, मोणं विराहित्तु असाहुरूवे ॥४॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुबई किंचि अणेसणिज । अग्गीविवा सबभक्खी भवित्ता, इओ चुओ गच्छइ कटु पावं ॥५॥न तं अरी कंठ छित्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पा। से नाहिई मञ्चमुहं तु पत्ते, पच्छाणुतावेण याविहणा ॥६॥ निरत्थया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तमट्टे विषयासमेइ। इमेवि से नस्थि परेवि लोए, दुहओऽवि से झिज्झइ तत्थ लोए ॥७॥ एमेवऽहाछंदकुसीलरूवे, मगं विराहित्तु जिणुत्तमाण। कुरीविवा भोगरसाणुगिडा, निरहसोया परितावमेइ ॥८॥ सुचाण मेहावि मुभासियं इम, अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मगं कुसीलाण जहाय सर्व, महानिर्यठाण वए पहेणं ॥९॥ चरित्तमायारगुणनिए तओ. अणत्तरं संजम पालियाणं। निरासवे संखवियाण कम्म. उवेड ठाणं विलउत्तम धर्व ॥७५०॥ एवम्गर्दतेऽवि महातबोधणे, महामुणी महापडणे महायसे। महानियंठिजमिण महासुर्य, से काहए महया वित्थरेणं ॥१॥ तुट्ठो य सेणिओराया, इणमुदाहु कयंजली। अणाहयं जहाभूर्य, सुतु मे उबदसियं ॥२॥ तुज्ा मुलई खुमणुस्स जम्म, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी!! तुम्भे सणाहा य सबंधवा य, भे ठिया मम्गि जिणुनमाणं ॥३॥ तंसि नाहो अणाहाणं, सबभूयाण संजया !। खामेमि ते महाभाग!, इच्छामि अणुसासिउं ॥४॥ पुच्छिऊण मए तुर्भ, झाणविग्यो य जंकओ। निमंतिया य भोगेहि, तं सर्व मरिसेहि मे ॥५॥ एवं धुणित्ताण से रायसीहो, अणगारसीहं परमाइ भत्तिए। सओरोहो य सपरियणो (सबंधवो य), धम्माणुरनो विमरेण चेयसा ॥६॥ ऊससियरोमकूवो, काऊण य पयाहिणं । अभिवदिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥७॥ इयरोऽवि गुणसमिदो तिगुत्तिगुत्तो तिदंडविरओ य। विहगइव विप्पमुक्को विहरइ वसुहं विगयमोहु ॥७५८॥ नि बेमि, महानियंठिजं २०॥ चंपाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसो सो उ महप्पणो ॥९॥ निगथे पावयणे, सावए से विकोविए। पोएण ववहरते, पिहुंडं नयरमागए ॥७६०॥ पिहुंडे ववहरंतम्स, बाणिओ देह धूअरं । नं ससनं पइगिज्म, सदे. समह पथिओ॥१॥ अह पालियस्स घरणी, समुईमि पसवइ । अह दारए तहिं जाए, समुहपालित्ति नामए ॥२॥ खेमेण आगए चंप, सावए वाणिए घरं। संवड्ढई घरे तस्स, दारए से महोइए ॥३॥ बावनरीकलाओ य, सिक्खिए (जाए य) नीइकोविए। जुवणेण य अस्फु(संप)गणे, सुरूवे पियदसणे ॥४॥ तस्स रुववई भज्ज, पिया आणेइ रूविणिं । पासाए कीलए सम्मे, देवो दोगुंदगो जहा ॥५॥ अह अन्नया कयाई, पासायान्टोअणे ठिओ। वज्झमडणसोभार्ग, वझं पासइ बज्झगं ॥६॥ तं पासिऊण संविग्गो, समुहपालो इणमब्बवी। अहो असुहाण कम्माणं, निजाणं पावर्ग इमं ॥ ७॥ संबुद्धो सो तहिं भयर्व, परमं संवेगमागओ। आपुन्छऽम्मापियरो, पवए अणगारियं ॥८॥ जहिज सगंथ (तु संगं च) महाकिलेस, महंतमोहं कसिणं भयाणगं। परियायधम्म चऽभिरोअज्जा , बयाणि सीलाणि परीसहे य॥९॥ अहिंस सर्वच अनेणगं च, तनो अचंभ (अचंभ) अपरिम्गहं च। पडिवजिया पंच मह. १२८३ उत्तराध्ययनानि मूलसूत्र, सर्ग-२१
मुनि दीपरत्नसागर