Book Title: Yogakshema Sutra
Author(s): Niranjana Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 5
________________ HARES952 5668 आशीर्वचन BREEEEEEEEEEEE REEEEEEEEEEEEEE ॐ30 236838 202800 3636548565668 88888888 8 833 सूक्त थोड़े में बहुत कहने की कला है। सार वही जिसका कलेवर छोटा, मूल्य अधिक । वह चिन्तन से स्फूर्त नहीं होता, वह है सहजता की अभिव्यक्ति । बहन निरंजना ने सूक्तों के चयन का प्रयत्न किया है । प्रयत्न में से जो अप्रयत्न निकले, वह अधिक सार्थक होता है। पाठक के लिए योगक्षेम वर्ष की स्मृति सद्यस्क रहेगी और एक बड़ा उपक्रम छोटी-सी सीमा में समाविष्ट होकर तम में आलोक भरता रहेगा। युवाचार्य महाप्रज्ञ ८-१२-६० राणावास (मारवाड़) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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