Book Title: Yogakshema Sutra Author(s): Niranjana Jain Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 9
________________ आठ मंगलाचरण से भावित हो मैंने ७५ संकल्पों की जोत जलायी, भविष्य में यह दीपशिखा मेरी संयम एवं संकल्प यात्रा में प्रकाश-स्तम्भ बने । स्वीकृत संकल्प-सूची में ७५ वें संकल्प-सिद्धि के लिए मैंने श्रीमुख से एक विशेष वार्षिक-संकल्प-एकांतर मौन एवं अन्नाहार प्रत्याख्यान का व्रत स्वीकार किया। आहार-संयम एवं वाणी-संयम का यह प्रयोग शान्ति एवं शक्ति प्रदायक रहा । आज उसी वार्षिक अनुष्ठान की पूर्णाहुति पर यह पुष्प श्री चरणों में समर्पित कर हार्दिक आह्लाद की अनुभूति कर रही हूं । मेरे साधक जीवन की सफलता में अमूल्य गुरु कृपा एवं महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी की वात्सल्य दष्टि वरदायी रहे हैं। साथ में साध्वीश्री राजीमतीजी की कुछ करने की प्रेरणा तथा अभी जैन विश्व भारती में प्रवासित साध्वीश्री विमलप्रज्ञाजी का प्रोत्साहन मेरे विकास में प्रेरक हैं। और परिवार-परिसर में माता-पिता, भाईबहनों का अनन्य भाव साधनानुकल वातावरण निमित में अनन्य सहयोगी हैं । मेरे इस प्रयोग की अनुमोदना में सबकी प्रसन्नता तथा मेरी दोनों बहिनों तारा एवं पुष्पा द्वारा कृत एकान्तर मासिक प्रयोग ने मेरे उत्साह को अभिवधित किया है । इस पुस्तिका के नियोजन में आद्योपांत सहयात्री रही-सुश्री माणक कोठारी। मैं इन सबके प्रति हृदयाभारी हूं। ___ जैन विश्व भारती के कुलपति श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया ने मेरे इस छोटे से प्रयास को अल्प समय में आकार देकर लाभान्वित किया है-सादर कृतज्ञ हूं। लाडनूं निरंजना जैन १४-१२-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 214