Book Title: Yogakshema Sutra Author(s): Niranjana Jain Publisher: Jain Vishva BharatiPage 10
________________ निरंजना की संक्षिप्त जीवन शैली "साधक-जीवन को लेखनी में बांधना यूं लगेगा जैसे हमने विस्तृत आकाश को मुट्ठी में कैद कर लिया हो, पर कभी-कभी शब्द परिचय के लिये आवश्यकता बन जाते हैं, ऐसा ही हम लोगों के साथ है।" आपका जन्म (कु. निर्मला, मुंह बोला नाम) विक्रम सम्वत् २०१४ माघ कृष्णा चतुर्थी को नागौर जिले लाडनूं नगर में हुआ। चन्देरी धरा गदगद हो उठी, क्योंकि ये नगरी साध सन्तों, तपस्वियों की जननी है, ऐसे में आप जैसी संयमी, शान्त नारी रूपी साधिका का जन्म अद्भुत कृति है। श्री बुद्धमल एवं रत्नीदेवी को पिता एवं मां होने का सौभाग्य मिला। तीन भाई एवं दो बहनों की आप लाडली बहन हैं। आप बचपन से प्रतिभाशाली रही Simple Living and High Thinking के बीज बचपन की धरती में ही अंकुरित होने लग गये, जिसकी वजह से आपकी चिन्तनशीलता अध्ययन की तरफ जुड़ चुकी थी। आपने बी०ए० किया राजस्थान युनिवर्सिटी "मैरिटलिस्ट' में आपका आठवां स्थान रहा। इसके अलावा होम्योपैथिक डिप्लोमा लियापारमार्थिक शिक्षण संस्था में सात वर्ष का अध्ययन किया। आगम शोध-कार्यों में भी आप सहयोगी रही। शिक्षा का सिलसिला अभी भी गति पर है। जैन विश्व भारती "डिम्ड' युनिवर्सिटी से आप प्राकृत साहित्य में एम०ए० कर रही हैं। आपकी रुचि प्राकृत, अंग्रेजी, हिन्दी और संस्कृत भाषा में भी है। आप जैनागमों का सरुचि स्वाध्याय करती हैं इसके अलावा आप चिकित्सा क्षेत्र में होम्योपैथी तथा एक्यूपंचर में भी रुचि रखती है। ___ सारा परिवार आपको आदर्श रूप में देखता है, प्रतिमास आपसे प्रेरणा प्राप्त करता हैं। “संति एगेहिं भिक्खुहिं गारत्था संजमुतरा।" ये उक्ति आप पर चरितार्थ होती है। अब तक की आपकी जिन्दगी धार्मिक विचारों ये ओतप्रोत रही। धर्म के सागर में डबकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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