________________
HARES952
5668
आशीर्वचन
BREEEEEEEEEEEE
REEEEEEEEEEEEEE
ॐ30
236838
202800
3636548565668
88888888
8
833
सूक्त थोड़े में बहुत कहने की कला है। सार वही जिसका कलेवर छोटा, मूल्य अधिक । वह चिन्तन से स्फूर्त नहीं होता, वह है सहजता की अभिव्यक्ति । बहन निरंजना ने सूक्तों के चयन का प्रयत्न किया है । प्रयत्न में से जो अप्रयत्न निकले, वह अधिक सार्थक होता है। पाठक के लिए योगक्षेम वर्ष की स्मृति सद्यस्क रहेगी और एक बड़ा उपक्रम छोटी-सी सीमा में समाविष्ट होकर तम में आलोक भरता रहेगा।
युवाचार्य महाप्रज्ञ
८-१२-६० राणावास (मारवाड़)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org