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तारपछि दुःख पां मरी ॥ ते कहुं करी ९४३ विस्तार ॥१॥ वज्ञ कंटक ज्ञान वि ना में नर्कने दोन ॥ जेड पायेंपाविष डे ॥ कउं सौ झुं रगोदर कांन ॥ २ ॥ पा पिपरत्रिय पञ्चादिक करे काम व शसंगराह पायें परत्नी कमां ॥ पा |मेते दुःखच्प्रभंग ॥३॥ स्परवानास खसाँरु ॥ कयेोध
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