Book Title: Vrundavanvilas Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya View full book textPage 8
________________ R RRRRRRRNA कविवर वृन्दावनजीका यद्यपि उसकी आर्थिक अवस्था पूर्वकी नाई नहीं है, परन्तु साधारण लो गोसे कहीं अच्छी है। * कविवरके ज्येष्ठ पुत्र वावू अजितदासजीका विवाह आरामें बाबू मुन्नीलालजीकी सुपुत्रीसे हुआ था । मुन्नीलालजी आरामें एक प्रतिष्ठित धनी थे। वावू अजितदास प्रायः अपनी ससुरालमें आया जाया करते थे और पीछे वही रहने लगे थे। उसी समयसे उनका कुटुम्ब आरानिवासी हो । गया। आरामें रहते हुए उसे लगभग ६० वर्ष हो गये। * कविवरके दो पुत्रोमेंसे केवल अजितदासजीसे वशकी रक्षा हुई । शि। खरचन्दजीके कोई सन्तान नहीं हुई । अजितदासजीके सुन्दरदास, पुरु षोत्तमदास, और हरिदासनामके तीन पुत्र हुए थे । इन तीनोंका जन्म * आरामें ही हुआ था, जिनमें से सुन्दरदासके कोई सतान नहीं हुई । पुरुषोअत्तमदासके शिरोमणिवीवी नामकी एक पुत्री है, जो कि अभी जीवित हैं, और वावू हरिदासजीके हनुमानदास, गुलावदास, महतावदास, और। । वुलाकचन्दनामके चार पुत्र है। श्रीजीसे प्रार्थना है कि, उनका वश चिरकालतक ससारमें रहै, और उसमें अनेक प्रतिभाशाली कविरत्न उत्पन्न हों। __ वावू अजितदासजी भी अपने पिताके समान कवि थे । कविवर वृन्दावनजीने छन्दशतक नामका जो पिंगलका अन्य बनाया है, वह इन्हीके पढनेके लिये बनाया था। जैसा कि, उसकी प्रशस्तिमें लिखा है_अजितदास निज सुबनके, पढनहेत अभिनन्द । श्रीजिनन्द सुखकन्दको, रच्यो छंद यह वृन्द ॥ ___ कविवरकी इच्छा थी कि गोस्वामी तुलसीदासकृत रामायण सहन । * एक जैनरामायण वनाई जावे, तो ससारका बहुत उपकार हो । परन्तु * उनकी यह इच्छा पूर्ण न हुई । निदान मृत्युके ममय उन्होंने अपने पुत्रमे। कहा कि, जनरामायणको बनाके तुम मेरी एक इच्छाकी पनि मग्ना ।। हर्पका स्थान है कि, अपने पिताकी आजा शिगेधार्ग करके या अजितदासजीने जनरामायण बनाना प्रारम कर दी और उसके ७१ नगारीPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 181