Book Title: Vrundavanvilas Author(s): Nathuram Premi Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya View full book textPage 6
________________ कविवर वृन्दावनजीका इसी बीच हरिवंशलाल, बाबा गृह जाये। नाम सहारूसाह, साहजूके कहलाये ॥ बाबा हीरानंदसाह, सुन्दर सुत तिनके। पंच पुत्र धनधर्मवान, गुनजुत थे इनके । प्रथमै राजाराम बबा, फिर अभयराज सुनु । उदयराज उत्तम सुभाव, आनन्दमूर्ति गुनु । भोगराज चौथे कहो, जोगराज पुनि जानिये । इन पितु लगि काशी, निवास अस मानिये ॥ अब बाबा खुशहालचन्द, सुतका सुन वरनन । सीताराम सुज्ञानवान, वंदों दिन चरनन ॥ ददा हमारे लालजी, वो कुल औगुन खंडित । तिन सुत धर्मचन्द मो पितु सब, शुभ जसमंडित ॥ तिनको दास कहाय, नाम मो वृन्दावन है। एक बात औ दोय पुत्र, मोकों यह जन है । महावीर है श्रात नाम, सो छोटो जानो। ज्येष्ठ पुत्रको नाम, अजित इमि करि परमानो ॥ मो लघु सुत है शिखरचन्द, सुंदर सुत ज्येष्ठको । इमि परिपाटी जानिये, कहो नाम लघु श्रेष्ठको॥ मंगसिर सित तिथि तेरस, काशीमें तब जानो। विक्रमाब्दगत सतरह से, नवविदित सुमानो ॥ * इस प्रशस्तिसे ऐसा जान पड़ता है कि, पहले इनके वशधर काशीमें ही है रहते थे। पीछेसे वारा चले गये थे, और वारासे फिर काशीमें रहने लगे। थे। हरिवशलाल और खुशहालचन्दमेसे हरिवंशलालका कुटुम्ब तो जोगराजजीकी पीढीतक काशीमें ही रहा है। परन्तु खुशालचन्दका कुटुम्व शायद स्थानान्तर कर गया था। और सवत् १७०९ में फिर काशी आ रहा था। कविवरके पिता बाबू धर्मचन्द्रजी काशीमें बाबरशहीदकी ग लीमें रहते थे। 1 हर्षका विषय है कि, कविवरका वंश आरामें अब तक विद्यमान है । KKHARAPage Navigation
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