Book Title: Vimalprabha Tika Part 01
Author(s): Jagannath Upadhyay
Publisher: Kendriya Uccha Tibbati Shiksha Samsthan

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Page 12
________________ प्रकाशकीय प्रायः आधुनिक इतिहासज्ञ विद्वानों की मान्यता है कि पालि-त्रिपिटक ही प्राचीन एवं प्रामाणिक बुद्धवचन हैं और महायान तथा तन्त्रपिटक बाद के विकास हैं, किन्तु परम्परागत बौद्ध विद्वान्, विशेषतः तिब्बती-परम्परा, इसे मानने के पक्ष में नहीं है। इनके मतानुसार महायान-पिटक और मन्त्र-पिटक (सूत्र और तन्त्र ) सर्वथा प्रामाणिक बुद्धवचन हैं। इधर आधुनिक गवेषणाओं के फलस्वरूप अनेक दुर्लभ ग्रन्थ एवं प्राचीन ग्रन्थों के सन्दर्भ उपलब्ध हुए हैं / इनके तटस्थ अध्ययन से तिब्बती-परम्परा की उक्त मान्यता की पुष्टि हुई है। तन्त्र-विद्या उत्कृष्ट अध्यात्मविद्या है। तन्त्र-शास्त्रों का यदि विधिवत गुरुपरम्परा से सम्यग् अध्ययन एवं मनन किया जाए तो प्रतीत होगा कि उनमें मान्यं बौद्ध धर्म और दर्शन के सिद्धान्तों से विपरीत कुछ भी नहीं है। तन्त्रों के बारे में प्रायः सामान्य लोगों में अत्यधिक विप्रतिपत्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। कुछ लोग इन्हें जादूटोना मात्र समझते हैं, किन्तु वास्तविकता सर्वथा इससे भिन्न है। तन्त्र-विद्या केवल बाह्य भौतिक या ऐहिक उपलब्धियों का साधनमात्र नहीं है, अपि तु इसमें उत्कृष्ट बुद्धत्व एवं लोकोत्तर निर्वाण की प्राप्ति के क्षिप्र फलदायी उपाय प्रदर्शित हैं। यह सही है कि उन उपायों का सामान्य जनों में खुले-आम प्रकाशन नहीं किया जाता, क्योंकि इससे लाभ की अपेक्षा हानि की ही अधिक सम्भावना रहती है। अतः पात्रता का विचार कर गुरु योग्य शिष्यों को इस विद्या को प्रदान करता है। इसलिए तन्त्र-विद्या गुह्य-विद्या कही जाती है। ___ तन्त्र-सम्बन्धी भ्रान्तियों के निरास के लिए तथा उनका दुरुपयोग रोकने के लिए यह आवश्यक है कि पूरी सावधानी बरती जाए और तन्त्र-ग्रन्थों पर उत्कृष्ट कोटि का शोध, वैज्ञानिक सम्पादन एवं प्रकाशन कार्य हो / श्रीकालचक्रतन्त्र न केवल अनुत्तरतन्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग है, अपितु समस्त अन्य तन्त्रों से पृथक् यह एक विशेष प्रकार के सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है। ऐसा होने पर भी यह अन्य तन्त्र और सूत्र प्रस्थानों से गहरे रूप से अन्तःसम्बद्ध है। इसके अध्ययन से न केवल तन्त्र-विद्या की विशिष्टताओं पर ही प्रकाश पड़ता है, अपि तु तत्सम्बद्ध अनेक स्वतन्त्र विद्या-शाखाओं का भी सुस्पष्ट परिज्ञान होता है, जैसे-खगोलविद्या, भूगोल, ज्योतिष, आयुर्वेद, शिल्प-विद्या आदि /

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