Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१३) लेशुं माल ॥ ५५ ॥ एक जणे कटका किम थाय, एक जणे ए लेसे राय; जेट नेद जुन कहत ब्रह्मे, तो किम लखमी नेटत तुझे ॥५५॥ एक नणे सहु आव्युं साथ, माल समरपी महारे हाथ; महारे मस्तक मोटुं कर्म, सवि कहिने मन लागो मर्म ॥५६॥ त्रटकी नटकी उठ्यो साथ, माल नणी के वाहे हाथ; वडा जणी जो दीधी शोन, तुज डोकरने वाध्यो लोज ॥५॥ नारवहा सिर महेट्यो नार, तो शुं लारवहां नंमार; वडो करी बेसार्यों आज, तो शुं तुह्मघर श्राव्युं राज ॥५॥ हाथे दुई अंगुलमी चार, अंगुठो पांचमो विचार; एक एक विण न सरे काज, पांच तणे मेलावे गज ॥ ५७ ॥ हाक्यो ताम हसीने रह्यो, बुझिविण बोल वरांसे कह्यो; वमपण थकु वरांशो मूल, हुं महाजनना पगनी धूल ॥६० ॥ बोले बोले वाधे राड, कांटे कांटे वाधे वाड; एक जणे कहीए एटलुं, मांदो मांद प्रीबगे जबुं ॥ ६१ ॥ एक
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