Book Title: Vasupujya Jin Punya Prakash Stavan Author(s): Shobhna R Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 16 अनुसंधान-३० चंदिइ सीतल जिन सिअंसो । वासुपूज्य जिणंद रे । नमो विमल अनंत धर्मों सांतिनाथ मुणिंद रे । कुंथु अर जिन मल्लि सुव्रत । नमो श्री नमि नेमि रे । पास जिनवर वीर जगगुरु । त्रिविध धुरि सुमरेमि रे ॥२॥ ३ नमी कर्मक्षय सिद्धनइ । तिम नमी आगमसिद्धा । ते गौतम प्रमुखा मुनी विभु-कुंअर तप सिद्धा दृढप्रहारी तपसिद्धा ॥३॥ त्रू० । अति विसुद्धा सुद्ध बुद्धा नमी जिनना गणधरा । सिद्धि बुद्धि सुलद्धि धारक प्रणमीइ मंगलकरा ॥ पंच वर आचारपालक अट्ठ गणिसंपदधरा । पुण्यदिनकर-उदयकारणि प्रणमीइ जगि गणिवरा ॥४॥ ढाल । सरसति अमृत वसइ मुखि वाणी ॥ . राग - केदारो ॥ श्रीजिनवर-प्रवचनना वाचक । जे जगि वरति सुविहित वाचक । श्रुत वाचक दातारो । अढीयदीपना अनोपम मुनिवर । सकल जंतुना अनोपम हितकर । ए पद त्रिभुवन सारो । ते प्रणमीइ त्रिकालो ॥५॥ त्रू० । नाम गोअ सवण थविराणहो । . महफल भणि गुणावहो । वंदणं नमणं पडिपुंछणं । बहुपातक-संतति-मोछणं ॥६॥ जइ वि सक्ति नही तपदाणनी । चरण सक्ति नही जस दाणनी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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