Book Title: Vastu Chintamani Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur View full book textPage 4
________________ वास्तु चिन्तामणि xvii होने से त्याज्य हैं। उसी भांति दोषपूर्ण, नियम विरुद्ध निर्मित वास्तु विशाल एवं आकर्षक होने पर भी अंततः दुखदायक ही होती है। अतएव यह अत्यंत आवश्यक है कि निर्माण की जाने वाली वास्तु, वास्तु शास्त्र के नियमों को ध्यान में रखकर ही बनाई जाए। प्रत्यक्ष ही हमें संसारी प्राणियों की दुखी अवस्था दृष्टिगोचर होती है। आर्थिक, मानसिक, शारीरिक दुखों से मनुष्य दुखी हो जाते हैं। पुत्रहीनता, कुपत्र, कलहकारिणी पत्नी, धूर्त मित्र तथा स्वार्थी सम्बंधियों से सामान्यत: पीड़ा देखी जाती है। मनुष्य इनसे दुरखी तो होता है किन्तु कारण नहीं खोज पाता। सुख की खोज में यत्र-तत्र भटकने पर भी सुख का कोई सूत्र उसके हस्तगत नहीं होता है। मनुष्य के इन दुखों का एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है, दोषपूर्ण वास्तु में उसका निवास करना। दुकान, व्यापारिक भवन, उद्योग इत्यादि भवनों का निन्याम भी वास्तु शास्न के नियमों के अनुरूप होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा न करने से मनुष्य अनायास ही उलझनों में घिर जाता है। परम दयालु, करुणा स्रोत, स्व पर हित साधन में तत्पर परम पूज्य गुरुवर्य आचार्यश्री 108 ज्ञानयोगी प्रज्ञाश्रमण देवनन्दि जी महाराज का लक्ष्य अनायास ही इस ओर गया। संसार के आकुलित, दुखी मनुष्यों की अवस्था पर आपने मनन किया। करुणा का स्रोत नि:सृत हो उठा। मुनिवर का कोमल मन नवनीत की भांति संसार दुख की आंच से द्रवित हो उठा। आप का सारा जीवन परोपकार की उत्कृष्ट भावना से ओत-प्रोत है। सन्तों की शोभा परोपकार से ही है - परोपकाराय सतां विभूतय मानव का उपकार करने की उत्कट भावना को लेकर आपने वास्तु शास्त्र विषय पर गहन चिन्तवन किया। अनेकानेक शास्त्रों का अध्ययन किया। तदुपरांत आपके ज्ञान सागर से एक अमूल्य चिन्तामणि रत्न का उद्भव हुआ। अथक परिश्रम से प्राप्त यह चिन्तामणि रत्न समस्त मानवों की चिन्ताओं को हरण कर उन्हें अकल्पनीय सुख प्रदान करेगा इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। . यहां यह उल्लेख करना प्रसंगोचित है कि पूज्य गुरुवर की लेखनी से पूर्व में भी अनेकों ग्रंथ निःसृत हुए हैं। णमोकार-विज्ञान, ज्ञान-विज्ञान, विवेक- विज्ञान, आहार विधि विज्ञान, मंत्रों की महिमा आदि लघु ग्रंथों के अतिरिक्त आपके द्वारा भक्तामर स्तोत्र सर पाँच खण्डों में अभूतपूर्व रचना हुईPage Navigation
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