Book Title: Varddhamanakshara Chaturvinshati Jin Stuti
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ नवेम्बर लक्ष्मीकल्लोगगणि थे । इनके अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है । इनका परिचय, जन्म, दीक्षा, पद आदि भी अज्ञात है । लक्ष्मीकल्लोलगणि आगम- साहित्य और काव्य-साहित्य शास्त्र के प्रौढ़ विद्वान् थे । आगम ग्रन्थों पर इनकी दो टीकाएँ प्राप्त होती हैं : १. आचाराङ्ग सूत्र तत्त्वागमारे टीका प्राप्त होती है जिसका रचना सम्वत् १५९६ दिया हुआ है । जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास में टीका के स्थान पर अवचूर्णी लिखा है ।। २. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र 'मुग्धावबोध टीका५- इसमें रचना सम्वत् प्राप्त नहीं है। श्री देसाई ६ के मतानुसार सोमविमलसूरि के विजयराज्य में विक्रम सम्वत् १५९७-१६३७ के मध्य रचना की गई है । इससे इनका साहित्य रचनाकाल १५९० से १६४० तक निर्धारित किया जा सकता है। आगम साहित्य पर टीका रचना से यह स्पष्ट है कि आगम साहित्य पर इनका चिन्तन और मनन उच्च कोटि का था । इन दोनों टीकाओं के अतिरिक्त स्वतन्त्र कृतियों के रूप में कुछ स्तोत्र भी प्राप्त होते है वे निम्न हैं : ११९९ जिन स्तव (समस्याष्टक) १३४२ साधारण जिन स्तवः (समस्याष्टक) १४४० ऋषभदेव स्तव १७७२ महावीर स्तोत्र (सावचूरि) ५०८९ समस्याष्टक ६२३२ साधारण जिन स्तव (पराग शब्द के १०८ अर्थ) जिनरत्नकोश : पृष्ठ २४, इसके अनुसार इसकी प्रति A descriptive Catalogue of the Mss. in the B.B.R.A.S. Vol. No. 1397 4. पृष्ठ ५२०, पैर नं. ७६१ ५. जिनरत्रकोश : पृष्ठ १४७, इसके अनुसार इसकी प्रति A descriptive Catalogue of the Mss. in the B.B.R.A.S. Vol. No. 1473 6. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ५२०, पैरा नं. ७६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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