Book Title: Vandaruvruttya Parnamni Shraddha Pratikraman Sutra Vrutti
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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वृत्तिः
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श्राद्धप्र. नमो अरिहंताणं ॥ १॥ नमो सिद्धाणं ॥ २॥ नमो आयरियाणं ॥३॥ नमो उव.
ज्झायाणं ॥४॥ नमो लोए सवसाहणं ॥ ५॥ एसो पंचनमुकारो ॥६॥ सव्वपावप्पणा
सणो ॥७॥ मंगलाणं च सव्वेसि ॥८॥ पढमं हवइ मंगलं ॥९॥ _ नमो नमस्कारोऽहन्यः शक्रादिकृतां पूजां सिद्धिगति वार्हन्तीत्यहन्तस्तेभ्यः । यथा “अरहंति वंदणनमंसAणाणि अरिहंति पूयसक्कारं । सिद्धिगमणं च अरिहा अरिहंता तेण वुचंति ॥ १॥” नमः सिद्धेभ्यः सितं प्रभूत
कालेन बद्धमष्टप्रकारं कर्म शुक्लध्यानाग्निना ध्मातं भस्मीकृतं यैस्ते निरुक्तिवशासिद्धास्तेभ्यः। यथा “दीहकालरयं जंतु कम्मं से सियमट्टहा । सियं धंतंति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजायइ ॥१॥" नम आचार्येभ्यः स्वयं पञ्चविधाचारवन्तोऽन्येषामपि तत्प्रकाशकत्वात् आचारे साधव आचार्यास्तेभ्यः। यथा “पञ्चविहं आयारं आयरमाणा तहा पयासंता । आयारं दंसंता आयरिया तेण बुचंति ॥१॥" नमः उपाध्यायेभ्यः उपेत्य समीपमागत्य येभ्यः सकाशादधीयत इत्युपाध्यायास्तेभ्यः। यथा “वारसंगो जिणक्खाओ सज्झाओ कहिओ बुहेहिं । तं उवइसंति जम्हा उज्झाया तेण वुचंति" नमो लोके सर्वसाधुभ्यः लोके मनुष्यलोके, सम्यक्ज्ञानादिभिर्मोक्षसाधकाः सर्वसत्त्वेषु समाश्चेति साधवः, सर्वे च ते स्थविरकल्पिकादिभेदभिन्नाः साधवश्चेति सर्वसाधवस्तेभ्यः। यथा-निधाणसाहए जोए जम्हा साहंति साहुणो।समा य सव्वभूएसु तम्हा ते भावसाहुणो' एप पञ्चनमस्कारः सर्वपापप्रणाशनः । मङ्गलानां
ECTORCERCORRECACHERE
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