Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh, Vishwanath Pathak
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 6
________________ समप्पणं एहि जस्स दुल्लहा वाणी जस्स पावणं किच्छं । जस्स सुवयणं सिविणीहूअं, डंबर-सुमण-सरिच्छं । जस्स णेत्तए णच्चइ रूवं, झाणे गुणो वलग्गइ । जस्स चेट्ठिए चिन्तिज्जंते, अग्गी उररम्मि लग्गइ ।। जेण जए हं कओ अपुत्तो, अंबा कआ अवित्ता । कआ य भइणी भाइविहूणा, सुहा सुयोमल-चित्ता ।। दीवावली जेण मह णीआ, जणणीए तिलछट्टी । रक्खा-पव्वं हिअं ससाए, पियामहस्स विलट्ठी ।। घणं जेण तारिसं मेल्लिअं, तिमिरं मज्झ समीवे । दिणे ण णस्सइ उइए सुरिए, णिसि ण पलित्ते दीवे ॥ अज्ज तस्स णिठुरस्स हा हा, दूरं गयस्स सग्गं । हरिप्पसायस्सिणमप्पिज्जइ, सस्सं वज्जालग्गं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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