Book Title: Vairagyashatakama Author(s): Ramchandra D Shastri Publisher: Ramchandra D Shastri View full book textPage 7
________________ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX श्रा प्रथम गाथामा एम का के, आ जीव संसार- असारपणुं जाणे ठे, तो |य पण श्री जिनप्रणीत धर्मने नथी करतो; एवं कडं. परंतु न्हानी नम्मरवाला अने तेज नवने विषे मोक्ष जनारा अने श्री वीरनगवाननी देशना फकत् एकज *वार सनिलवादी दृढ वैराग्यवान् अएला, एटलुंज नही पण ते संसारना असार पणा संबंधी माता पिता साथे प्रत्युत्तर करी ठेवटे माता पितानी आज्ञा ले जे रो बाल्यावस्थामां दीक्षा अंगिकार करी, एवा श्री अतिमुक्तककुमारनु वृत्तांत श्री अंतगमदशांग अने नगवत्यादि सूत्रने अनुसारे नीचे प्रमाणे जाणवू.. कथा. पोलासपुर नगरने विषे विजय नामे राजा, तेनी श्री नामनी पट्टदेवी एटले पटराणी, ते बे जणनो अतिमुक्तक एवे नामे पुत्र हतो. ते पुत्र बहु उद्यमे करीने महोटो अयो, अनुक्रमे करीने उ वर्षनी अयो, ते अवसरे नगरनी बहार श्री वीरस्वामी समोसख्या. एटले पधाख्या. त्यार पठी ज्ञानवंत एवा गौतम गणधर, (**XXXXX********* *** ** Jain Education in sual For Private & Personal Use Only Ww.jainelibrary.orgPage Navigation
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