Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri

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Page 9
________________ * कहेता हवा, “यथासुखं देवानुप्रिय एटले हे देवतानने वजन! जेम तने सुख उपजे तेम." त्यार पठी गौतमस्वामीनी साये आवीने अतिमुक्तक कुमार नगवंतने वंदन करतो हवो. त्यार पठी जगवते धर्मनो उपदेश दीघो, ते उपदेश सांजलीने प्रतिबोध पाम्यो एवो अतिमुक्तक कुमार, दीक्षा ग्रहण करवाने श्छतो सतो माता पिनानी अनुज्ञा लेवाने अर्थे, घेर अावाने माता पिताने या प्रकारे क* हेतो हवो. “हे अंब! हे तात! में प्राज श्री वीरस्वामीजीनी पासे धर्म सानKडयो. ते धर्म मने रुब्यो. एटले ते धर्म करवानो मने अनिलाष भयो .” ते | * अवसरे ते माता पिता कहेतां हवा. "हे पुत्र! तुं धन्य , तुं कृतपुण्य ,तुं कतार्थ दु. एटले तने धन्य डे अने करघु ने पुण्य ते जेणे एवो तुं श्रयो, अने कर्यो । अर्थ नाम प्रयोजन ते जेणे एवं तु अयो. जे कारण माटे तें वीरस्वामीजीनी समीपे धर्म सांजल्यो, अने वली ते धर्म तने रुच्यो, ते कारण माटे.” त्यारपती ते कुमार फरीने एप्रकारे कहेतो हवो, “हे अंब! हे तात! हुं ते धर्म सांजल Jain Education Intel For Private & Personal Use Only jainelibrary.org

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