Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri

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Page 12
________________ **XXXXXXXX********XXXXXXX जवं, नाश पाम, ए ने धर्म कहेता खनाव ते जेनों एवो . ते प्रथम अथवा पठी जरूर त्यागवा जोग्य ठे. एटले मूकबोज पमशे. दवे कोण जाणे आपणा मध्ये कोण पहेलुं परलोके जशे ? अथवा कोण पठी जशे? एवी खबर परती | नथी. ते कारण माटे तमारी आज्ञाए करीने हमणांज हुं दीका लेवाने श्छुछु."| ए रीते कुमारे कयु. त्यारपत्री फरीने माता पिता ते कुमरने कहेता हवा. “हे al पुत्र! या तहारुं शरीर विशेष रूपवालु एवं, अने लक्षण व्यंजन रूप गुणे क. रीने सहित एवं, अने नाना प्रकारनी व्याधिए करीने रहित एवं, अने सौनाग्य पसाए करीने सहित एवं, अनेन दणाएलां एवां, अने नदान कहेतांमनोहर अने कांत कहेता मनोज्ञ एवां, पांच इंनि तेमणे करीने सोन्जायमान एवं, एटले अ खंमित मनोहर पांच इंडियोए करीने रूप सौनाग्यादि गुणोने अनुन्नवीने एटले लोगवी ने परिणत वयवालो प्रश्ने एटले परिपक्क अवस्थावालो प्रश्ने पठी प्र ___ लक्षण -हाथ पगनी रेखादिक. व्यंजन-मष तिलकादिक. YYYYXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX Jain Education Indian For Private & Personal Use Only M.jainelibrary.org

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