Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri

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Page 10
________________ *** XXX******************* वादिके करीमे संसारना नये करीने नदिन एटले नपरांग मनवालो एवो अने जन्म मरणना जयश्रकी नय पामेलो एवो श्रयो बु, ते कारण माटे तमारी अनुझाए करीने एटले रजाए करीने श्री वीरप्रनुजीनी समीपे प्रव्रज्या ग्रहण करवाने श्व॒ ." एवं का. त्यारपठी ते कुमारनी माता अनिष्ट कहेतां वल्लन्न नही एवं, अने एकांतपणे अणगमतुं एवं, अने अप्रिय एवं, अने प्रश्रम को दहा मो न सांवलेलं एवं, ते कुमारनुं वचन सांजलीने तत्काल शोकना समूह प्रत्ये पामी. एटले शोकातुर अई. अने दीन अने नदास एवा मने करीने सहित ठे मुख ते जेनुं एवी थइ सती, मूळ पामीने अंगणतलने विषे एटले घरना प्रांगवामां घसती सर्व अंगोए करीने पमी. ते अवसरे दासीनए शीघ्र, सोनानो कलश लावीने ते कलशना मुखश्रकी नीकलतुं एवं शीतल अने निर्मल एवं जल तेनी धारानए करीने एटले सुगंधवाली पाणीनी धारानए गंटी, अने करखो ताढा वायरानो नपचार ते जेने एवी कर सती चेतना पामीने वि ******************* Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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