Book Title: Vairagyashatakama Author(s): Ramchandra D Shastri Publisher: Ramchandra D Shastri View full book textPage 6
________________ | হাত X XXXXXXX m ****XXXXXXXXXXXXXXXXXXX जानन् इह जीवः न करोति जिनदर्शितं धर्म जाणतो इह जीवो । न कुण जिणदेसियं धम्मं ॥१॥ अर्थ-(असारे के) सार रहित एवो, अने (वाहि के") व्याधि. एटले शरीर संबंधि उख, (वेषणा के) वेदना. एटले मन संबंधि पुःख, तेणे करीने (पनेरे के) प्रचुर. एटले बहुल अथवा नरेलो एवो, (इह के) आ (संसारंमि के) संसारने विषे (सुहं के) सुख जे ते (नचि के) नथी. (जाणंतो केए) ए प्रकारे जाणतो एवो (जीवो के) जीव जे ते (जिरादेसियं के) जिनराजना प्ररूपेला (धम्मं के) धर्मने (न कुण के०) नश्री करतो ! ॥१॥ नावार्थ-अनेक प्रकारना आधि, व्याधि, अने नपाधि तेणे करीने आ संसा रजरेलो ने, एटले आ असार संसारमा कां पण सुख नथी. एवी रीतेश्रा जीव जाणे डे, देखे , अने अनुजवे बे; सोय पस आ भूढ जीव जिन परमात्माना कहेला धर्मने नथी करतो!! KK*********XXXK Jain Education International For Private & Personal Use Only . .jainelibrary.orgPage Navigation
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