Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ पत्र ५४२ पत्र ५४५ पत्र ५४५ पत्र ५४८ पत्र ५४६ पत्र ५६३ विवागसु १११७० २११३६ २।१०।१ पत्र ५६३ पत्र ६६६ पत्र ६२४ पत्र ६२४ पत्र ६२४ ज्ञातावृत्ति पत्र २ वर्णकग्रन्थो त्रावसरे वाच्यः रायपसेणियं सू० ३, ४ सू० ६८८ रायपसेणिय वृत्ति पृ० ३ पृ० पृ० १० ८ 15 पृ० २७ पृ० ३० पृ० ३६ १५ "जहा उववाइए तव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे" त्ति यथोपपातिकेऽट्टणसाला व्यतिकरो .......... "जहा दढपइन्ने” त्ति यथोपपातिके दृढप्रतिज्ञोऽधीतस्तथाऽयं वक्तव्यः तच्चैवम् "एवं जहा दढपइन्नो" इत्यनेन यत्सूचितं तदेवं दृश्यम् "जहा उववाइए" इत्यनेनयत्सूचितम् "जहा अम्मडो" त्ति यथोपपातिके अम्मडोऽधीतस्तथाऽयमिह वाच्यः " एवं जहा उववाइए जाव आराहग" त्ति इह यावत्करणादिदमर्थतो लेशेन Jain Education International दृश्यम् — "एवं जहे" त्यादिना यत्सूचितम् "एवं जहा उववाइए" इत्यादि भावितमेवाभ्मडपरिव्राजककथानक इति । "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् "जहा उववाइए" त्ति अनेनेदं सूचितम् जहा ढ जहा दढपणे जहा दढपणे असोयवरपायवे पुढविसिलापट्टए वत्तव्वया ओववाइयगमेणं नेया एदिसाए जहा उववाइए जाव अप्पेगतिया सम्प्रत्यस्था नगर्या वर्णकमाह- ( यहां औपपातिक का उल्लेख नहीं ) यावच्छन्दकरणात् "सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते" इत्याद्योपपातिकग्रन्थप्रसिद्धवर्णकपरिग्रहः अशोकवरपादपस्य पृथिवीशिलापट्टकस्य च वक्तव्यता औपपातिकग्रन्थानुसारेण ज्ञेया । यावच्छब्दकरणाद्राजवर्णको देवीवर्णकः समवसरणं चोपपातिकानुसारेण तावद्वक्तव्यं यावत्समवसरणं समाप्तम् यावच्छब्दकरणात् “आइकरे तित्थगरे" इत्यादिकः समस्तोपि औपपातिकग्रन्थप्रसिद्धो भगवतद्वर्णको वाच्यः स चातिगरीयानिति न लिख्यते, केवलमोपपातिकग्रन्थादवसेयः बहवे उग्गा भोगा इत्याद्योपपातिक ग्रन्थोक्तं सर्वमवसातव्यं यावत् समग्रापि राजप्रभृतिका परिषत्पर्युपासीना अवतिष्ठते For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 854