Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२३
१७३
१७३
१८६
१६७ १६७
तो
२२८
२४५
६५४
चरियासु
चलियासु
६८३
(घ)
१५६ सव्वोउय
सव्वोउत° (क,ख,ग,ध) पिणद्ध
विनद्ध तिठाण
तित्थाण. (क,ख,ग,घ,च,छ) १८५ आईणग
आदीणग (क,ख,ग,घ) उड्ढं
उद्धं 'वेइया
वेतिया (क,ख,ग,घ,च,छ) फलएसु
°फलतेसु (क,ख,ग,घ,च,छ) २१६
तगो (क); ततो (छ) "बिटा
बेंटा क,ख,ग,छ; बेठा (च) सुविरइ-रयत्ताणे
सुइरइ-रइत्ताणे (क,ख,ग,घ,छ) २६२ कडुच्छ्यं
कडुच्छ्यं (क,ख,ग,घ)
(क,ख,ग) पीय
पील
(क,ख,ग) 'विंद
°वंद ६८७ 'वूहे
(क,ख,ग) ६६५ 'परिभाइत्ता
परिभागेत्ता (क,ख,ग,घ,च,छ) ७०६ कोट्टयाओ
कोट्ठाओ (क,घ) ७२० अगिलाए
अइलाए
(क,च) ७५४ अओ'
अयो (क,ख,ग); अय° (घ) ७५५ भिच्चा
(घ) ७६० किसिए
कसिए (क,ख,ग,घ,छ) ७७१ वाउकायस्स
वाउयागस्स (क,ख,ग,घ,च,छ) ७८७ भिक्खुयाणं
भिछुयाणं (घ, च) , ७६१ प्पओगेण
प्पयोगेण प्रति-परिचय
क) यह प्रति सरदारशहर 'श्रीचन्द गणेशदास गधैया पुस्तकालय' से प्राप्त है। इसके ४६ पत्र तथा १८ पृष्ठ हैं। प्रत्येक पत्र की लम्बाई १०।। इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर है यह प्रति वि० सं० १६७१ की लिखी हुई है। इसकी पुष्पिका निम्नोक्त है
नमो जिणाणं जियभयाणं णमोसुय देवयाए भगवईए णमो पण्णत्तीए भगवईए णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्सवणीणभए । छ। रायपसेणइयं समत्तं । छ । ग्रंथाग्रं २०७६ समथितमिदं सूत्रं छ संवत १६७१ वर्षे भाद्रवा सुदि ११ । आगे भी पष्पिका है पर उस पर हड़ताल फेरी हुई है।
) पत्र क्रमश: ५५, ६१ । ये दोनों प्रति 'क' प्रति के सदश ही हैं। (घ) यह प्रति यति कनकचन्दजी' पाली (मारवाड़) की है। इसके पत्र ५४ व पृष्ठ १०८ हैं ।
भेच्चा
___(घ)
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