Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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कार्य संपूति
इसके संपादन का बहुत कुछ श्रेय युवाचार्य महाप्रज्ञ को है, क्योंकि इस कार्य में अहर्निश के जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य संपन्न हो सका है अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुह होता। इनकी वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है। सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर रहस्य पकड़ने में इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रमपरायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्ष मानता ही पाई है। इनकी कार्य क्षमता और कर्तव्यपरता ने मुझे बहुत संतोष दिया है।
प्रस्तुत आगमों के पाठ संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा। उन सबको में आशीर्वाद देता हूं कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो।
अपने शिष्य साधु-साध्वियों के सहयोग से पाठ संशोधन का बृहत् कार्य सम्यगु रूप से सम्पन्न हो सका है, इसका मुझे परम हर्ष है।
अक्षय तृतीय, १ मई १९८७ अध्यात्म साधना केन्द्र, महरोली – नई दिल्ली
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आचार्य तुलसी
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