Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब अभिप्रायें चालणहार द० विसंबरहित कारजनो करण फ असन्त्र ले तेवि निन पुराराध क्रोध । शीघ्र हार इत्यादिगुणें करि सहित करे शिष्य निश्चै नगुरु १३ रण्यास पुरकोववेया ॥. पसायए ते ऊं दुरासयपि ॥ १३ ॥ नाव अएबोलाव्यो किंकिंचित्भात्र थोश बोलाव्यो थको को क्रोध असत्य कुकरे क्रोधक्से कोई आसपा थकोन बोले सकीधोने तमिगमिक्रम केचि पुलोयानाखियंवए ॥ कोई असनं। | धा मनने किए विनयनोकरतव्य ते मुजने मियकारी अात्मा रेच पूर्ण एक एये पकारें अात्मा जे वनिमैं विषे धारे मने अविनयपएं मुमने श्रप्रियकारी. दमवो भएी धारेघा पियमपिय ॥१५॥ अप्पा चेव एदमेयव्यो अप्पाउं रवधु 5. दमतां अन् आत्मा दन्दमतो स सुषी होश् अन् इहसोकने पर परलोकने व प्रधान मे अनात्माने दंव्दम्याच | दोहियो थाय विषे दिने १५ मझने उट्टमो॥ अप्पा दंतो सुहाहो ॥ अस्सिसोयं ॥ परचय॥१५॥वरं मे अप्पा दंतो ॥ थको For Private and Personal Use Only

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