Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्त. ๆ | रिग् पण www.kobatirth.org | याइवि अथवा न बेसीरहे बा॰ अथवा न नरहे एमगुरूने समीपे पानिकों १.३ आचार्य वादि ॥ नचित्रे गुरुणंतिए॥ १९ ॥ प्रायरियहि वाइतो फगुरुमुनुपरे म प देषएाहारमोन्दनी जुo रहे साद करे एहबानो अर्थी गुब् गुरुनी समीपे पसाय पेहीनियागवा नववि क. किवारेपण च मूकीने वा. बोलायोथको तु माबोल्यो 'न नरहे - १ क० किवारे धको सिणिन् नक च्या० गुरु एकवारबोने० वारंवार बो सावे बसे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं० सदाइ २० सावे ते गुरु संया ॥२०॥ आसवं तेजवं यासने धीर्यवंत जo जनावंत जुन साबधानपणे सांभसे २१ बुडवत थको तेवा ॥ ननिसिद्य कयाइ ॥ चना आसा धीरो ॥ जने ० पोताने मासने ग० न नपूबे प्रमादिक. ए० निश्वे नं. से. संथारे क० कि पारेपणा प्रा० गुरुनीसमीपे For Private and Personal Use Only जुत्तपति सये ॥ २१ ॥ बेगेनपू. नोको पु० पूबाई साग ॥ नद्या ॥ नैवसिवागनुं ॥ कयाइवि ॥ त्र्ागमुकुकुन॑संतो ॥ पुबेद्या J

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