Book Title: Upmiti Bhav Prapanch Katha Prastav 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Nathuram Premi

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Page 4
________________ और मुझसे हो सका तो इसके शेष भागोंका अनुवाद करनेके लिये भी मैं शीघ्र प्रयत्न करूंगा। __ इस ग्रन्थके मूलक" महामनीपी श्रीयुत सिद्धर्पिसूरि विक्रमकी दशवीं शताब्दिमें हो चुके हैं। यह ग्रन्य उन्होंने जेठ मुदी ५ गुरुवार पुनर्वसु नक्षत्र संवत् ९६२ में पूर्ण किया था, ऐसा इस ग्रन्यकी अन्तःप्रशस्तिसे विदित होता है: संवत्सरशतनवके द्विपटिसहिते लंधिते चास्याः । ज्येष्ठे सितपञ्चम्या पुनर्वसौ गुरुदिने समाप्तिरभूत् ॥ इस श्लोकमें केवल संवत्सरं शब्द दिया है, जिससे यद्यपि यह स्पष्ट नहीं होता है कि, यह वीरनिर्वाण, विक्रम, शक आदि कौनसा संवत्सर है । परन्तु सिद्धर्पिविषयक अनेक दन्तकथाओंके आधारसे तथा अन्यान्य कई ग्रन्थकारोंके उल्लेखोंसे यह प्रायः सिद्ध ही हो चुका है कि उपमितिभवप्रपंचाकथा-विक्रमके' ही ९६२ संवत्सरमें ___ महात्मा सिद्धर्षिके गुरुका नाम गर्पि और दादागुरुका नाम सूराचार्य था। प्राभाविकचरित्र नामके ऐतिहासिक ग्रन्थसे पता लगता है कि, शिशुपालवध (माघ) नामक सुप्रसिद्ध महाकाव्यके कर्ता माघ महाकवि श्रीसिद्धर्षिके काकाके लड़के थे। गुजरात प्रान्तके श्रीमाल नामक नगरके राजा श्रीवर्मलाभके मंत्री सुप्रभदेवके दो लड़के थे, एक दत्त और दूसरा शुभंकर । दत्तके यहां महाकवि माघने और शुभंकरके यहां महामनीपी सिद्धर्पिने जन्म लिया था। सिद्धर्षि अपनी पहिली अवस्थामें बड़े जुआरी थे, इस १ प्रो० पिटर्सनने इस संवत्सरको श्रीवीरनिर्वाण संवत् माना है परन्तु वह केवल भ्रम है।

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