Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): Kshemrajmuni, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 490
________________ उपदेशसप्ततिका. मूडमा ॥१३॥ कोहं विरोहं सयसं चश्स, कया थहं महवमायरिस्सं ॥ १६ ॥ सम्मत्तमूखाणि अणुवयाणि, अहं परिस्सामि सुहावहाणि । त पुणो पंचमहब्बयाणं, जरं वहिस्सामि सुवहाणं ॥१७॥ एवं कुकृताण मणोरहाणि, धम्मस्स निवाणपहे रहाणि। पुनजाणं हो सुसावयाणं, साइण वा तत्तविसारयाणं ॥ १०॥ हवंति जे सुत्तविरुधनासगा, न ते वरं सुदृवि कठ्ठकारगा। सखंदचारी समए परूविया, तसणिडावि अश्व पाविया ॥ १५ ॥ अश्कमिचा जिपरायथाणं, तवंति ति तवमप्यमाणं । पढंति नाणं तह दिति दाणं, सवं पितेसिं कयमप्यमाणं ॥२०॥ जिणाण जे वापरया सयाऽवि, न बग्गई पावमई कयाऽवि। तेर्सि तवेऽपि पिणा विसुकी, कम्मरूपणं च हविज सिधी ॥१॥ 1176 ॥३०॥ Jain Education Intem For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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