Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): Kshemrajmuni,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
View full book text
________________
उपदेशसष्ठतिका.
॥ १४१ ॥
Jain Education International
पावा पावेस तालुवेदं, रसाणुराजं श्य पुरकगेदं ॥ ४५ ॥ गइंदकुंजत्थखगंधलुध्धो, इंदिंदिरो घाणरसेण गिद्धो । दहा मुद्दा मच्चुमुहं वेई, को गंधगिद्धिं हियए वदेई ॥ ५० ॥ फासिंदियं जो न हु निग्गदेई, सो बंधणं मुद्धमई लदेई । दधुरंगो जद सो करिंदो, खिवेश अप्पं वसणम्मि मंदो ॥ ५१ ॥ misr at विस उदिन्नो, डुकं श्रसंखं दलई पवन्नो । 'सबड़ा पंचसु तेसु बुद्धा, मुद्धा तेसिं सुगई नि सिद्धा ॥ ५२ ईवा विसया विसार्ज, पछा जवे जेहि मदाविसा । जेहिं पया हुंति परसा, न सेवषिका खलु ते रसाउं ॥ ५३ ॥ तित्थंकराणं निष्णा पमाणं, कुषंति जे उप्रिय चित्तमाणं ।
पर्सि किरिया वहाणं, संजायई दुरकसद स्सताणं ॥ ५४ ॥
482
For Private & Personal Use Only
%%%*9
मूलम् ।
।। २४१ ॥
Xww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506