Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): Kshemrajmuni, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 495
________________ दमककर असाहुलोएण य जं पवन्नं, बुहो न गिव्हिज धणं अदिन्नं । अंगीकए जम्मि श्हेव पुरवं, बहर खहुँ नेव कया सुकं ॥ ४ ॥ समायरं वा अवरस्स जायं, मनिङ बिंदिजा जणाववायं । जे अन्नकतासु नरा पसत्ता, ते जत्ति पुस्काइ श्हेव पत्ता ॥ ४५ ॥ जे पावकारीणि परिग्गहाणि, मेखंति श्रच्चंतउहावहाणि । तेसिं कहं हुँति जए सुहाणि, सया जविस्संति महादुहाणि ॥ ६ ॥ सदं सुणित्ता महुरं अणिठं, करिज चित्तं न हु तुहरुलं । रसम्मि गीयस्स सया सरंगो, अकालमचुं लहई कुरंगो ॥ ४ ॥ पासितु रूवं रमणीण रम्मं, मणम्मि कुजा न कयाऽवि पिम्मं । पईवमने पमई पयंगो, रूवाणुरत्तो हवई अणंगो ॥ ४ ॥ जलम्मि मीणो रसणारसेणं, विमोहिउँ नो गदि जएणं । 484 A MATA JainEducation intelle For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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