Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): Kshemrajmuni,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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मणे मागं पिदु तिरोसो, न धारियो कयपावपोसो ļ जर्ज जवे पुन्नजलस्स सोसो, संपऊए कस्सऽवि नेव तोसो ॥ ३३ ॥ मदारिसीणं श्ररिणा समाणो, न श्राणियबो दिययम्मि माषो । धम्मं श्रहम्मं च वियाणमाणो, हुका जो जेण जमोवमाणो ॥ ३४ ॥ सुसाहुवग्गस्स मणे माया, निसेहियवा सययंपि माया । समग्गलोया विजा विमाया - समा समुप्पाश्यसुप्पमाया ॥ ३५ ॥ जे जवे बंधुजणे विरोदो, विवहुए रजाधणम्मि मोहो । जो जंपि पावतरुपपरोदो, न सेवियवो विसमो स लोहो ॥ ३६ ॥ जो सुषित्ता न जाइ डुकं, तं जंपियवं वयणं न तिरकं । इदं परत्यादि य जं विरुध्धं, न किए तं पि कया निसिध्धं ॥ ३७ ॥ वारूवं विरइक वेसं, कुमा न अन्नस्स घरे पवेसं ।
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