Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): Kshemrajmuni,
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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उपदेशसप्ततिका.
मूखम्।
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॥२४॥
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जवंति ते पुस्कदरिददीणा, परम्मि खोए सुहविप्पहीणा ॥ ६ ॥ पुलोदएणं नणु कोइ जीवो, निसं समुङोइयनाणदीवो। मोहंधयारप्पसरं दलित्ता, पिछे निवाणपहं पश्त्ता ॥ ६१॥ तत्यंतराया बहवे पसिझा, कोहाश्णो वेरिगणा विरुझा ( समिझा)। हरंति ते धम्मवणं डबेणं, को निजिणेई नणु ते बबेणं ॥ ६ ॥ पावाइँ पावा परिसेवमाणा, धम्म जिणुविष्मयाणमाणा। अन्नाणकठेहिं कयानिमाणा, खिवंति अप्पं नरए अयाणा ॥६३ ॥ न जागवं हिययम्मि कुजा, कुलाजिमाणं पुण नो वहिजा । स्वं नवं इस्सरियं अजवं, बड़े सुबुझी न धरिज गवं ॥ ६४ ॥ अहं खु लोए बलवं तवस्सी, सुयाहि वा अयं जसंसी। खानेऽवि संते मुल न दुजा, तहप्पणो उकरिसं न कुजा ॥ ५ ॥
KAMALAMACHAKRECE
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४॥२४
॥
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