Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): Kshemrajmuni, 
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 494
________________ उपदेशसप्ततिका. मूखम्। ॥ ४०॥ साहूण साहूण तहा विसेसं, जाणिक जंपिऊ न दोसलेसं ॥ ३०॥ जति गुरूणं दियए धरित्ता, सिकिज नाणं विणयं करित्ता। अत्थं वियारिङ मई सम्मं, मुणी मुणिका दसन्नेयधम्मं ॥ ३९ ॥ हासाश्वकं परिवङियवं, बक्कं वयाणं तह सङियत्वं । पंचप्पमाया न हु सेवियवा, पंचंतरायाऽवि निवारियवा ॥ ४ ॥ साहम्मियाणं बहुमाणदाणं, नत्ती अप्पिऊ तहऽन्नपाएं । वजिऊ रिधी तहा नियाणं, एयं चरित्तं सुकयस्स गणं ॥४१॥ अहिंसणं सबजियाण धम्मो, तेसिं विणासो परमो अहम्मो। मुणितु एवं बहुपाणिघाउँ, विवङियवा कयपच्चवा ॥ ४ ॥ कोदेण लोहेण तदा जएणं, हासेण रागेण य मठरेणं । जासं मुसं नेव उदाहरिजा, जा पञ्चयं लोयगयं हरिजा, ॥ ३ ॥ 486 ॥२४॥ lain Education in For Private & Personal Use Only LKsw.jainelibrary.org

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