Book Title: Updeshmala
Author(s): Kirtiyashsuri
Publisher: Sanmarg Prakashan
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४८५ ४२९/४४२ ३०७/४१० ५०/१६७
७/८२
[ परिशिष्टम् [१] उपदेशमालायां मूलगाथानामकाराद्यनुक्रमः ॥] केहिवि सव्वं खइयं
४९६/४६७ | छज्जीवनिकायमहव्वयाण को तेण जीवरहिएण संपयं
२५७/३९५ | छल छउम संवइयरो को दाही उवएसं
४९०/४६५ छेओ भेओ वसणं को दुक्खं पाविज्जा
१२९/२३५ [ज] कोडीसएहिं धणसंचयस्स
४८/१४६ जं आणवेइ राया कोहो कलहो खारो
३०२/४१० जं जं नज्जइ असुई कोहो माणो माया
३०१/४०९ जं जं समयं जीवो [ख]
जं जयइ अगीयत्थो खर-करह-तुरग-वसभा
१८३/३६६ जंणेण जलं पीयं खित्ताईयं भुंजइ
३६२/४२८ जं तं कयं पुरा पूरणेणं _ [ग]
जं न लहइ सम्मत्तं गच्छगओ अणुओगी
३८८/४३३| जंतेहिं पीलिया वि हु गयकन्नचंचलाए
३२/१२८ जड़ गिण्हइ वयलोवो गाम देसं च कुलं
३५७/४२७ जइ ठाणी जड़ मोणी गारवतियपडिबद्धा
४२२/४४१ जइ ता असक्कणिज्जं गिरिसुयपुष्फसुआणं
२२७/३७८ जड़ ता जणसंववहार गीयत्थं संविग्गं
३७६/४३० जइ ता तणकंचण गुज्झोरुवयणकक्खोरुअंतरे
३३७/४२१ जइ ता तिलोयनाहो वि गुणदोसबहुविसेसं
३१५/४१२ जइ ता लवसत्तमसुर गुणहीणो गुणरयणायरेसु
३५१/४२५ जइ ताव सुव्वओ सुंदरो त्ति गुरु गुरुतरो य अइगुरू
१४२/२४० जइ दुक्करदुक्करकारओ त्ति गुरुपच्चक्खाणगिलाण
३७८/४३० जइ न तरसि धारे गुरुपरिभोगं भुंजड़
३७७/४३० जइ सव्वं उवलद्धं [घ]
जइयाऽणेणं चत्तं घेत्तूण वि सामन्नं
२५९/३९६ जगचूडामणिभूओ घोरे भयागरे सागरम्मि
३१४/४१२ जस्स गुरुम्मि न भत्ती [च]
जस्स गुरुम्मि परिभवो चंदो व्व कालपक्खे
४७७/४६१ जह उज्जमिउं जाणइ चरणकरणपरिहीणो
४२८/४४२ जह कच्छुल्लो कच्छु चरणकरणालसाणं
५३०/४७५ जह चक्कवट्टिसाहू चरणाइयारो दुविहो
३९६/४३५ जह चयइ चक्कवट्टी चारगनिरोहवहबंध
२८३/४०३ | जह जह कीरइ संगो चिंतासंतावेहि य
२८४/४०४ जह जह खमइ सरीरं चोरिक्कवंचणाकूडकवड
४५७/४५४ जह जह बहुस्सुओ सम्मओ [छ]
जह जह सव्वुवलद्धं छक्कायरिऊण अस्संजयाण
४३५/४४४ जह दाइयम्मि वि पहे छज्जीवकायवहगा
८२/२०१ जह नाम कोइ पुरिसो छज्जीवकायविरओ
४४१/४४९ जह मूलताणए पंडुरम्मि छज्जीवनिकायदयाविवज्जिओ
४३०/४४३ | जह वणदवो वणं
२०९/३७३
२४/१०१ ३९८/४३६ २००/३७१ १०९/२२२ १२४/२३४
४२/१३९ २२२/३७७
६३/१९५ ३४४/४२३
७१/१९७ ४५८/४५४
४/८१ २९/१११ ६७/१९६ ६६/१९६ ५०१/४६८ ४८३/४६३ ४३४/४४३
७५/१९९ २६३/३९६ ४२०/४४१ २१२/३७४
५८/१८३ १७३/३३१ ११६/२२७ ३४३/४२३ ३२३/४१४ ४८७/४६५ ४१६/४४० ४०५/४३७ २७३/४०२ १३२/२३५

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