Book Title: Tulsi Prajna 2005 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 3
________________ मैं और वह मैं चाहता हूँ कि जो मैं देखता हूँ, वह दूसरे भी देखें और जो मैं नहीं देख सकता, वह भी देखें। मैं अपनी अच्छाइयों को अच्छी तरह देख लेता हूँ। अपनी दुर्बलताओं को भी पैनी दृष्टि से देखता हूँ। फिर भी बहुत सम्भव है-मुझमें जो विशेषताएं विकास पा सकती हैं, उन्हें मैं न जानता होऊं। जो कमजोरियां तर्क की ओट में छिपी पड़ी हैं, उन्हें न समझता होऊं। मैं खुली पुस्तक की भांति स्पष्ट रहना चाहता हूँ। जिस दिन अपनी अच्छाइयों की अभिव्यक्ति का साहस और बुराइयों को न छिपाने का मनोभाव मुझमें प्रकट होजाएगा, उस दिन जो मैं देखूगा, वही दूसरे देखेंगे। फिर मेरे और दूसरों के दर्शन में कोई भेद नहीं होगा। - अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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