Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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18. जीवा णं भंते। दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मा. पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर, नो कलियोगा, विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा।
- भगवती (चतुर्थ खण्ड), पच्चीसवाँ शतक, उद्देश्क-4, पृ. 331 18-ए. फाणित प्रवाही गुड़-गुड़ का विकार विशेष, आर्द्र गुड़, पानी से द्रवित गुड़
- पाइअसद्दमहण्णवो, पृ. 622, एम.एल.बी.डी. 19. फाणियगुले णं भंते। कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा। एत्थ दो नया भवंति, तं जहा-नेच्छयियनए य वावहारियनए य। वावहारियनयस्स गोड्डे फाणियगुले, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे पन्नत्ते।
- भगवती (तृतीय खण्ड), अठारहवाँ शतक, उद्देशक-6, पृ. 704 20. भमरे णं भंते। कतिवण्णे पुच्छा।
गोयमा। एत्थ दो नया भवंति, तं जहा-नेच्छयियनए प वावहारियनए प। वावहारियनयस्स कालए भमरे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते। - भगवती (वही), तृतीय खण्ड, 18वां शतक, उद्देशक-6, पृ. 706
प्रवक्ता, जैन दर्शन विभाग दर्शन संकाय श्री लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ (मान्य विश्वविद्यालय) कुतुब सांस्थायिक क्षेत्र, नई दिल्ली - 16
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तुलसी प्रज्ञा अंक 122
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