Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ पड़ा रहे- बिना आग को शुरू किये) ही काफी नहीं है, उनमें आपस में 'प्रक्रिया' शुरू करानी पड़ती है बाह्य साधन से। जैसे ताप का संग्रहण हो जाना (Sponge iron, bleaching powder) आदि में। लेकिन पानी व चूने की रासायनिक प्रक्रिया शुरू कराने के लिए यह शर्त नहीं है। केवल उन दोनों के मिल जाने से रासायनिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जैसेHC1 (नमक का अम्ल) व Zn जस्ते का मिलाना। उसमें गर्मी पैदा होती है। कुछ क्रियाएं गर्म करने से शुरू होती हैं। जैसे उच्च तापमान रासायनिक क्रियाएं हैं। यदि वो स्वपोषी नहीं है तथा ताप-प्रकाश नहीं निकलता है तो सचित्त अग्नि की श्रेणी में नहीं है। साधारण अग्नि में हवा का होना जरूरी है। 'अग्नि' को शुरू कराने के लिए उस पदार्थ में कुछ ताप-शक्ति का प्रवेश कराना भी जरूरी है। यह ताप बाहरी अग्नि से, चिनगारी से, सूर्य की रोशनी से या ई.एम. लहरों से या विद्युत् से या अन्य रासायनिक प्रक्रिया से दिया जा सकता है। केवल एक बार ताप देकर यह प्रक्रिया शुरू की जाती है। बाद में 'आग' स्वपोषी बन जाती है। ___ अग्नि की प्रक्रिया के लिए चार अनिवार्य शर्ते मानी जा सकती हैं 1. जब तक ऑक्सीजन (या अपवाद रूप क्लोरीन-फ्लोरीन) उपलब्ध नहीं होती, अग्नि नहीं जलेगी। 2. जब तक ज्वलनबिंदु का निश्चित तापमान प्राप्त नहीं होता, अग्नि नहीं जलती'थ्रेसोल्ड' (न्यूनतम सीमा-बिन्दु) पार करे बिना। 3. जब तक ज्वलनशील पदार्थ इंधन रूप में नहीं मिलता तब तक अग्नि नहीं जलती। 4. जब तक उष्मा के साथ-साथ प्रकाश की ऊर्जा का विकिरण नहीं होता, तब तक अग्नि नहीं जलती। संक्षेप में1. ऑक्सीजन, 2. ज्वलनशील पदार्थ 3. ज्वलनबिंदु-तापमान, 4. उष्मा और प्रकाश का उत्सर्जन इन चारों का एकत्र योगदान अग्नि की अनिवार्य शर्त है। तापमान (Temperature) ___ "हमारे शरीर का तापमान 37 डिग्री सेण्टीग्रेड रहता है। अन्य पदार्थ इसके सापेक्ष कितने ऊँचे या नीचे तापमान पर है, उसी सापेक्षता से उनको गर्म या ठण्डा कहा जाता है।" तापमान अणु, परमाणु व इलेक्ट्रोन की एक विचलित (excited) अवस्था को जाहिर करता है। इसमें ताप-ऊर्जा जरूर है। लेकिन ज्यादा तापमान होने पर भी इसमें तेजस्काय का जीव होना जरूरी नहीं है। जैसे बुझे हुए चूल्हे की बहुत ही गर्म राख। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003 - 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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