Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 43
________________ निकलते रहते हैं और हमारे शरीर द्वारा उनका ग्रहण होता रहता है। इस प्रक्रिया के सन्दर्भ में धातु के गरम होने की प्रक्रिया को सरलता से समझा जा सकता है। धातु में विद्युत्-प्रवाह धातु की विद्युत्-चालकता का कारण है - इलेक्ट्रॉनों का स्वतंत्र विहरण। ये इलेक्ट्रॉन जब वाहक में से गुजरते हैं, तब वाहक में दोलन (oscittation) करने वाले धन आयनों (tvesuons) के साथ उनकी टक्कर होती रहती है। इन टक्करों के दौरान इलेक्ट्रोन की ऊर्जा का कुछ अंश दोलन करने वाले आयनों को मिलते हैं। इसके परिणामस्वरूप आयनों के दोलन और अधिक तीव्र और अस्तव्यस्त हो जाते हैं। ये आयनों को प्राप्त ऊर्जा उष्मा-ऊर्जा के रूप में प्रादुर्भूत होती है। इस प्रकार धातु (वाहक) में से जब विद्युत् का प्रवाह बहता है, तब उष्मा-ऊर्जा का उत्पादन होता है। इसे "जूल उष्मा" कहा जाता है और इस प्रक्रिया को "जूल प्रभाव" (Joule Effect) कहा जाता है, क्योंकि इसका आविष्कार जूल नामक वैज्ञानिक ने किया था। विद्युत्-आवेश और वाहक के दोनों छोरों के बीच विद्यमान विद्युत्-स्थिति-अन्तर जो वोल्टेज के रूप में है, के गुणनफल से ऊष्मा-ऊर्जा का परिमाण निकाला जाता है। इकाई समय में उत्पन्न उष्मा-ऊर्जा विद्युत्-प्रवाह की राशि करंट (जो एम्पियर में ही) के वर्ग के अनुपात में होती है । यह जूल का नियम (Jaule's Laws) कहलाता है। 04 इसी नियम के अनुसार टंगस्टन धातु के फिलामेंट में गुजरने वाले विद्युत्-प्रवाह के अनुपात में ऊष्मा उर्जा पैदा होती है। यह ऊर्जा भी पौद्गालिक है। यही उष्मा-ऊर्जा प्रकाश के साथ विकिरित होती है। इस प्रकार - ऑक्सीजन के अभाव में धातु को गरम करने पर ये जलती नहीं हैं, केवल उनका तापमान बढ़ जाता है। अत्यधिक तापमान होने पर उनके परमाणु से ऊर्जा का उत्सर्जन प्रकाश के रूप में होने लगता है। साथ में थोड़े रूप में उष्मा-ऊर्जा भी उत्सर्जित होती है पर जलने की क्रिया नहीं होती। यदि तापमान पिघलन-बिंदु तक पहुंच जाता है तो धातु पिघलने लगती है और तरल रूप ले लेती है। यदि तापमान और अधिक बढ़ाया जाए तो अन्ततोगत्वा वह वाष्परूप में परिणत हो जाती है। इस सारी प्रक्रिया में कहीं पर भी कोई रासायनिक क्रिया नहीं होती, केवल भौतिक क्रिया ही होती है यानी ठोस से तरल और तरल से वाष्प रूप में परिणमन होता है तथा ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। भौतिक क्रिया का तात्पर्य है कि तापमान बढ़ने के साथ धातु के मोलीक्यूल उत्तेजित होते हैं और उनकी गति तीव्र हो जाती है जो प्रकाश और उष्मा की ऊर्जाओं के रूप में परिणत होती है तथा धातु प्रकाशित हो जाती है। धातु का प्रकाशित होना धातु के भीतर रही हुई ऊर्जा का उत्सर्जन मात्र है, इसमें धातु जलती नहीं है, न ही राख, गैस आदि निष्पन्न होते हैं। पुनः धातु जब ठंडी होती है तब पुनः - तुलसी प्रज्ञा अंक 122 42 [ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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