Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 51
________________ गैस आयनीकृत (ionise) हो जाती है, जिससे विद्युत् प्रवाह चाप के रूप में शुरू हो जाता है। इसके अलावा यदि ऐसी गैस (जैसे जल-वाष्प या धातु-वाष्प) उसमें मिला दी जाये, जिसका आयनीकरण वोल्टेज कम होता है, तो अपेक्षाकृत कम वोल्टेज पर ही उस गैस की काफी मोटाई आयनीकृत होकर प्लाज्मा बना सकती है। जैसे आकाशीय बादल में विद्युत् चाप का पैदा होना। इसमें बादलों में इकट्ठी हुई स्टेटिक विद्युत् प्लाज्मा रूप में निरावेशित होकर प्रवाहित हो जाती है। इसमें बिजली की गर्जन, चमक व ताप पैदा होता है। इस प्रवाह को सचित्त माना गया है । इस प्लाज्मा में प्राणवायु से रासायनिक क्रिया भी देखने में आई है। उसमें गैस के परिवर्तन की प्रक्रिया देखी गई है।" डॉ. जे. जैन ने विज्जू और इलेक्ट्रीसिटी की भिन्नता को बताते हुए लिखा है"उत्तराध्ययन - अध्याय 36 में बादल अग्निकाय के भेद में 'विज्जू' शब्द से बिजली को तेऊकाय स्वीकार किया है। (यह सही तो है, लेकिन 'विज्जू' शब्द केवल उसी प्राकृतिक बिजली, जो आकाश में कड़कती हुई विद्युत् चाप यानि ऊष्ण-प्लाज्मा के रूप में दिखाई देती है, के लिए प्रयुक्त है। यह कृत्रिम 'विद्युत्-ऊर्जा' या बादलों में इकट्ठे 'स्टेटिक-चार्ज' की विद्युत्-ऊर्जा के लिए प्रयुक्त प्रतीत नहीं होता है।"13 अब आगम में "विजू'- बिजली या विद्युत् (Lightning) को सचित्त तेउकाय की गणना में किस अपेक्षा से माना गया है, उस अपेक्षा की स्पष्टता इस प्रकार होती है 1. जब तक बादलों के अंदर विद्युत्-आवेश स्थित (static) इलेक्ट्रीक ऊर्जा की अवस्था में अवस्थित रहते हैं, तब तक वे केवल पौद्गलिक यानी अचित्त द्रव्य हैं। 2. जब वे इलेक्ट्रीक चार्ज हवा के आयनीकरण की वजह से "डीस्चार्ज" होते हैं, तब इलेक्ट्रोमेग्नेटीक (विद्युत्-चुम्बकीय) ऊर्जा के रूप में भी पौद्गलिक अवस्था में होते हैं। 3. जब यह ऊर्जा जो अत्यधिक तापमान सहित होती है, ज्वलनशील पदार्थों (गैस, सूक्ष्म पदार्थ) के सम्पर्क में खुली हवा (जिसमें ऑक्सीजन भी होता है) में आती है तब कबंश्चन की क्रिया घटित होकर चमकती हुई बिजली के साथ ही अग्नि का स्वरूप प्रकट हो जाता है और बिजली सचित्त तेउकाय बन जाती है। जहां-जहां यह ज्वलनशील पदार्थों को जलाती है, वहां -वहां सब जगह सचित्त तेउकाय का अस्तित्व होता है। यह बहुत स्पष्ट समझ में आता है कि ज्वलन-बिंदु से भी अत्यधिक तीव्र तापमान और खुली हवा में ऑक्सीजन की उपलब्धि तथा ज्वलनशील पदार्थों का योग- ये सब मिलकर "विजू" को सचित्त तेउकाय बना डालते हैं। इसी प्रकार अशनिपात या वज्रपात भी तीव्र अग्नि का रूप बन जाता है। 50 तुलसी प्रज्ञा अंक 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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