Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 52
________________ इलेक्ट्रीसीटी और अग्नि ( तेउकाय ) ** केवल पौद्गलिक परिणमनों की निष्पत्ति रूप शुद्ध इलेक्ट्रीसीटी और ज्वलन क्रिया की निष्पत्ति रूप तेउकायिक जीव के रूप में उत्पन्न अग्नि की भिन्नता को अनेक आधारों पर स्पष्ट समझा जा सकता है 1. लकड़ी, रबड़, कपड़ा आदि विद्युत् के कुचालक हैं तथा ताप (उष्मा) के भी कुचालक हैं, जबकि लोहा, तांबा आदि धातु विद्युत् के सुचालक हैं तथा ताप (उष्मा) के भी सुचालक हैं। 2. लकड़ी आदि ज्वलनशील होने से ऑक्सीजन का योग मिलने पर शीघ्र जल जाते हैं। लोहा आदि धातु साधारण तापमान पर जलते नहीं, केवल गर्म होते हैं । अत्यधिक तापमान पर भी यदि ऑक्सीजन न मिले तो धातु गर्म होकर प्रकाशित हो जाती है तथा पिघलनांक बिन्दु पर तरल हो जाती है, जलती नहीं । 3. मिट्टी, धूल, पृथ्वी (पत्थर आदि) विद्युत् के सुवाहक हैं पर अग्नि की दृष्टि से अज्वलनशील हैं तथा अग्निशामक हैं । 4. अग्नि में पदार्थ नष्ट होता है या खत्म होता है तथा उसमें पदार्थ के रासायनिक ढ़ांचे में बदलाव आता है । हाइड्रोकार्बन इंधन जलकर गैस के रूप में (CO, और H, O आदि के रूप में) परिवर्तित होते हैं या अन्य ईंधन जलकर ठोस अवशेष (राख, कोयला) में बदल जाते हैं । ये राख आदि (non-fuel) इंधन नहीं होते हैं। रासायनिक क्रिया द्वारा इनका पर्याय बदलता है। घर्षण की अग्नि में पहले घर्षण से गर्मी पैदा होती है, गर्मी से उस पत्थर के बारीक टूटे कण 'लाल' रंग में चमकने लगते हैं- फिर 'हवा' से रासायनिक प्रक्रिया करके अग्नि पैदा करते हैं । (चकमक की अग्नि) । " 11114 5. पानी अग्नि को बुझा देता है, उसका शस्त्र है। किन्तु (ionised) पानी में विद्युत् का प्रवाह गुजर सकता है। इलेक्ट्रोलाइसीस की प्रक्रिया में पानी के भीतर विद्युत् प्रवाहित कर हाइड्रोजन ऑक्सीजन को अलग-अलग किया जाता है। उच्च वोल्टेज की विद्युत् गीली दीवार या नम (शीलन) वाली भूमि में आसानी से प्रविष्ट हो जाती है जो बहुत बार खतरे का कारण बन जाता है । इस प्रकार अग्नि का शस्त्र पानी अग्नि बुझाने वाला है पर विद्युतवाही बन सकता है। 6. केरोसीन जैसा ज्वलनशील पदार्थ आक्सीजन का संयोग होने पर जल उठता है, पर ई. डी. एम. मशीन में उसे कूलनेट (coolant) के रूप में काम लिया जाता है तथा स्पार्किंग के बावजूद भी आक्सीजन के अभाव के कारण जलता नहीं है। (इस विषय को अगले अंक में पढ़ें ... ) तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 51 www.jainelibrary.org

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