Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 45
________________ 1. स्थित अवस्था में इलेक्ट्रीसीटी अवाहक या कुवाहक पदार्थों में भी होती है। जब तक वह उसी रूप में रहती है वह केवल भौतिक या पौद्गलिक रूप है। 2. प्रवाह (current) के रूप में सुचालक या अर्धचालक पदार्थों में जब विद्युत् धारा प्रवाहित होती है, तब भी वह केवल पौद्गलिक रूप में है। तार में बहने वाली विद्युत् कितनी ही तेज क्यों न हो, जब तक वह तार के भीतर रहती है तब तक वह अपने आप में केवल पौद्गलिक अस्तित्व है, अचित्त है। शरीर में प्रवहमान विद्युत्-प्रवाह भी अपने आप में पौद्गलिक है। 3. इलेक्ट्रीसीटी का डीस्चार्ज या विद्युत्-आवेश का निरावेशन किस प्रकार होता है— इस विषय में अब हम चर्चा करेंगे तथा देखेंगे आकाशीय विद्युत् की प्रक्रिया के रूप में यह क्रिया कैसे घटित होती है ? पृथ्वी का वातावरण – आकाशीय विद्युत् (lightning) तथा उसका पृथ्वी पर पतन जो "अशनिपात" या बिजली के कड़कने के रूप में जाना जाता है, के घटित होने में निम्न कारक जिम्मेदार हैं - 1. पृथ्वी स्वयं में विद्युत् चार्ज (आवेश) से आवेशित है। 2. बादलों में "स्थित विद्युत्-आवेश" उत्पन्न होते हैं। 3. पृथ्वी का वातावरण (atmosphere) 400 किलोमीटर तक ऊपर फैला हुआ है। उसके दो स्तर–ट्रोपोस्फीयर और स्ट्रेटोस्फीयर कहलाते हैं। इनके बीच हवा में "आयनीकरण' होने पर प्लाज्मा का निर्माण होता है। ___ बादलों के दो स्तरों के बीच एक शक्तिशाली विद्युत् बल का निर्माण होता है। सर्वप्रथम तो हमें यह जानना होगा कि वातावरण में हवा के साथ ऑक्सीजन मौजूद रहता है तथा अन्य गैस या हलके रजकण तथा हलके तंतु आदि भी मौजूद रहते हैं। वाष्प के रूप में पानी के मोलीक्यूल भी ऊपर चले जाते हैं। ज्वलनशील गैस या अन्य सूक्ष्म कण आदि उच्च तापमान का योग मिलने पर अग्नि के रूप में परिणमन हो सकता है। पृथ्वी की सतह से लगभग 12 किलोमीटर तक का वातावरण "ट्रोपोस्फीयर" कहलाता है। उसके पश्चात् लगभग 50 किलोमीटर तक फैला हुआ वातावरण "स्ट्रेटोस्फीयर" कहलाता है। स्ट्रेटोस्फीयर का स्तर वातावरण की इलेक्ट्रीकल प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेवार है, जिसमें विद्युत् चमकने की घटनाएँ होती हैं। पृथ्वी स्वयं इलेक्ट्रीसीटी की सुचालक है किन्तु वातावरण के नीचे के स्तर पर हवा विद्युत् की कुचालक है। ऊँचे स्तर पर बाह्य अंतरिक्ष से आने वाली ब्रह्मांडीय विकिरणों (cosmic rays) की बम-वर्षा-सी होती है। ये विकिरणें तीव्र ऊर्जा वाली होती हैं। ये 44 तुलसी प्रज्ञा अंक 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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