Book Title: Tulsi Prajna 2003 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ जैन आगमों में विवाह संस्कार का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। यद्यपि इन अगमों में विवाह आधारशिलाभूत नारी के पक्ष-विपक्ष दोनों की ही भरपूर उक्तियाँ मिलती हैं तथापि स्त्रीत्व को निर्वाण सिद्धि में बाधक नहीं माना गया है। आर्या चन्दना भगवान् महावीर की प्रथम शिष्या थी, जिन्होंने सम्यक् चरित्र का पालन करते हुए मोक्ष की प्राप्ति की थी। तेरापंथ के दशम आचार्य महाप्रज्ञ ने आर्या चन्दना को ही लक्षित कर "अश्रुवीणा" नामक ललित काव्य प्रणीत किया है। जयन्ति कौशाम्बी के राजा शतानीक की बहन थी, जो वैभव विलास को त्यागकर साध्वी बन गई थी। व्याख्याप्रज्ञप्ति में उसका विस्तृत वर्णन मिलता है। ज्ञातृधर्म कथा और श्रुतस्कन्ध आदि जैनसूत्रों में ब्राह्मी, सुन्दरी तथा मृगावती आदि महिलाओं के उल्लेख मिलते हैं, जिन्होंने सांसारिक सुखों को त्याग कर सिद्धि प्राप्त की। जैन आगमों में तीन प्रकार के विवाहों का उल्लेख मिलता है। वर-वधू के माता-पिता द्वारा आयोजित विवाह जो स्मृतियों में उल्लिखित प्राजापत्य विवाह के सर्वथा समकक्ष है। अन्य दो स्वयंवर और गान्दर्भ कोटि के बताए गए हैं । जैन आगमों में स्पष्ट किया गया है कि विवाह समान स्थिति, समान व्यवसाय वाले लोगों में होना चाहिए, क्योंकि निम्न जातिगत तत्त्वों के सम्मिश्रण से कुछ की प्रतिष्ठा भंग हो जाती है। इस प्रकार जैन आगमों में भी सवर्ण विवाह को ही वरीयता प्रदान की गई है। ज्ञातृधर्म कथा के अनुसार श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार ने समान रूप-गुण और राजवंश वाली आठ राजपुत्रियों से विवाह किया था। मनुस्मृति की तरह जैन आगमों में प्रतिलोम विवाह के भी उदाहरण भरे पड़े हैं। कन्या को विवाह के अवसर पर जो सामग्री मिलती थी, उसे जैन आगमों में प्रीतिदान कहा गया है। प्रीतिदान के सन्दर्भ में भी अत्यन्त रोचक सूचनाएँ जैन आगमों में मिलती हैं। ऐसे ही उदाहरण मिलते हैं जब कन्या को स्वयं विवाहार्थ वर के घर जाना पड़ता था परन्तु सामान्यत: वर ही विवाहार्थ कन्या के घर आता था। स्वयंवर और गान्दर्भ विवाहों के वर्णन जैन आगमों में प्रायः वैसे ही हैं, जैसे कि स्मृतियों में। । उपर्युक्त तीन विवाहों के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के विवाहों का जैन आगमों में उल्लेख हुआ है, जो प्रायः वैदिक परम्परा में मान्य नहीं है, जैसे मातुदुहिता अर्थात् ममेरी बहन के साथ विवाह होना। इस प्रकार विवाह गुजरात और दक्षिण में तो मान्य था परन्तु उत्तर भारत में निषिद्ध माना जाता था। निशीथचूर्णि पिठिका, पिण्डनियुक्ति टीका तथा आवश्यक चूर्णि में मामा, बुआ तथा मौसी की लड़की से विवाह होने का उल्लेख मिलता है। विवाह सन्दर्भ में जैन आगम साहित्य में भी घर-जंवाई की प्रथा, बहु-पत्नीत्व की प्रथा, विधुर, विधवा विवाह की प्रथा, नियोग की प्रथा, सतीप्रथा और पर्दे की प्रथा का अत्यन्त विस्तृत वर्णन मिलता है। अन्त्येष्टि संस्कार जीवन का अन्तिम संस्कार माना जाता है। आवश्यकचूर्णि में अन्त्येष्टि क्रिया का विस्तृत वर्णन मिलता है। शव को चन्दन, अगुरु, घृत और मधु आदि डालकर 26 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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