Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 13
________________ 4 ] राजा राज्य करते थे । इन दोनों में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। (श्लोक ४२-४३) एक दिन राक्षस द्वीपाधिपति तड़ित्केश अन्तःपुरिकाओं सहित सुरम्य नन्दनवन में क्रीड़ा करने गए। तडित्केश जब क्रीड़ा में निमग्न थे तब एक वानर वृक्ष से नीचे उतरा और उनकी मुख्य रानी श्रीचन्द्रा के स्तनों को नाखूनों से खरोंच डाला । यह देखकर तडित्केश अत्यन्त क्रुद्ध हो गया और सिर के केशों को पीछे की ओर करते हए उसपर तीर छोड़ा। पत्नी का अपमान कोई सहन नहीं कर सकता । बाण विद्ध होने पर वह वानर वहां से भागकर समीप के उद्यान में, जहाँ एक मुनि कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े थे उनके पैरों पर गिर पड़ा । सुनि ने भी उसे परलोक यात्रा के पाथेय रूप नमस्कार महामन्त्र सुनाया। नवकार मंत्र के प्रभाव से वह वानर भवनवासी देवलोक में उदधिकुमार देव के रूप में उत्पन्न होते ही अवधि ज्ञान से अपना पूर्व भव जान कर वह मुनि के निकट आया और उनकी चरण-वन्दना की। मुनि सज्जनों के लिए सदैव वन्दनीय हैं, उनमें भी जो उपकारी होते हैं वे विशेष रूप से वन्दनीय हैं। (श्लोक ४४-४९) उधर तडित्केश की आज्ञा से उसके अनुचर बन्दरों की हत्या करने लगे। यह देखकर वह उदधिकुमार देव बहुत क्रुद्ध हो गए। उन्होंने अपनी वैक्रिय लब्धि से बड़े-बड़े वानरों की सष्टि की जो कि बड़े-बड़े वृक्ष और शिलाओं को उखाड़ कर राक्षसों पर फेंक कर उनकी हत्या करने लगे। इसे देवकृत उपद्रव समझकर तडित्केश वहाँ भाया और उदधिकुमार देव की पूजा कर पूछा, 'आप कौन हैं ? और क्यों उपद्रव कर रहे हैं ? पूजा से सन्तुष्ट होकर उदधिकुमार ने पूर्व जन्म में अपने निहत होने और नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से देव होने की बात बतलायी। (श्लोक ५०-५३) __ यह सुनकर तडित्केश देव के साथ मुनि के पास गए और उन्हें वन्दना कर पूछा, 'हे भगवन, इस वानर के साथ मेरा वैर क्यों हुआ ? प्रत्युत्तर में मुनि बोले, 'तुम श्रावस्ती नगर में मन्त्रीपुत्र थे, तुम्हारा नाम दत्त था और यह वानर काशी का एक व्याध था। एक वार तुम दीक्षा लेकर काशी जा रहे थे और यह व्याध शिकार के लिए काशी से बाहर जा रहा था। तुम्हें सम्मुख आते देखा तो

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