Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 3
________________ पुरोवाक् श्रीयतिवषभाचार्य विरचित 'तिलोयपण्णत्ती' करणानुयोग का श्रेष्ठतम ग्रन्थ है । इसके आधार पर हरिवंशपुराण, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति तथा त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों की रचना हुई है । श्री १०५ प्रायिका विशुद्धमती माताजी ने अत्यधिक परिश्रम कर इस ग्रन्थराज की हिन्दी टीका लिखी है । गणित के दुरूह स्थलों को सुगम रीति से स्पष्ट किया है । इसके प्रथम और द्वितीय भाग क्रमश: सन् १९८४ और सन् १९८६ में प्रकाशित होकर विद्वानों के हाथ में पहुंच चुके हैं प्रसन्नता है कि विद्वज्जगत् में इनका अच्छा आदर हुआ है । यह तीसरा और अन्तिम भाग है इसमें पांच से नौ तक महाधिकार हैं । प्रशस्ति में माताजी ने इस टीका के लिखने का उपक्रम किस प्रकार हुआ, यह सब निर्दिष्ट किया है । माताजी को तपस्या और सतत जारी रहने वाली श्रुताराधना का ही यह फल है कि उनका क्षयोपशम निरन्तर वृद्धि को प्राप्त हो रहा है। त्रिलोकसार, सिद्धान्तसारदीपक और तिलोयपण्णती के प्रथम, द्वितीय, तृतीय भाग के अतिरिक्त अन्य लघुकाय पुस्तिकाएँ भी माताजी की लेखनो से लिखी गई हैं । रुग्ण शरीर और आयिका को कठिन चर्या का निर्वाह रहते हुए भी इतनी श्रुत सेवा इनसे हो रही है, यह जैन जगत के लिये गौरव की बात है । आशा है कि माताजी के द्वारा इसी प्रकार की श्रुत सेवा होती रहेगी । मुझे इसी बात की प्रसन्नता है कि प्रारम्भिक अवस्था में माताजी ने ( सुमित्राबाई के रूप में ) मेरे पास जो कुछ अल्प अध्ययन किया था, उसे उन्होंने अपनी प्रतिभा से विशालतम रूप दिया है। विनीत : पन्नालाल साहित्याचार्य १५-३-१९८८

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