Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 12
________________ २८ (धनु) + ( जीया ) जहाँ बाण है । पुनः vs+४ ( जीया ) को ४ (अधनुष की जीवा) मिखने पर हमें निम्नलिखित सम्बन्ध प्राप्त होता है। (धनुष ।'-h+r (अई धनुष को जीवा ) बाबा /२५-२०६: समय, मावलि, उच्छवाउ, प्राण और स्तोक को व्यवहारकाल मिटि किया है। पुदगलपरमाणु का निकट में स्थित श्राकानप्रदेश के प्रतिक्रमण प्रमाण जो अविभागीकाल है वही समय नाम से प्रसिद्ध है । इकाइयों के बीच निम्नलिखित सम्बन्ध है। असंख्यात समय - पावलो [जघन्य युक्त असंन्यात का प्रतीक २ है जो मूल में संष्टि रूप आपा प्रतीत होता है। संख्यात पावली श्वास महाया में कार पाथी हर यह स्पष्ट संष्टि से - प्राण नहीं है क्योंकि सांपेय को संदृष्टि ३ होना चाहिये । । ७ वच्छवास - । स्तोक संकि पनागुल का प्रतीक है मो सावित हो सकता है संध्यास पहा निर्यात करती हो? ७ स्तोक , - एमब ३ खब नाली २ नाली १ मुहूतं [ समय कम एक मुहूर्त को भिन्न मुहूर्त कहते हैं। ] २० मुहूर्त १दिन १५ दिन १पक्ष १ मास २मास ३ ऋतु १पयन २पयन - पर्व वर्ष इसप्रकार प्रथलारम का मान { " x (१." वर्षों के बराबर होता है। बागे पष्ट संध्यात सकले जाने का संकेत है। गावा ४३१-३१२ इन गापामों में संख्या प्रमाण का विस्तार से वर्णन है । संख्येय, वसंख्येय और अमन्त को सीमाएँ निर्धारित की गई है। इनमें कुछ मौपचारिक प्रसंस्पेय और मनन्त्र संख्याएं । यथा उत्कृष्ट

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