Book Title: Terapanth ka Rajasthani ko Avadan Author(s): Devnarayan Sharma, Others Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 4
________________ आशीर्वचन भाषा अपने आप में महत्त्वपूर्ण नहीं होती। वह तब महत्त्वपूर्ण बनती है, जब कोई संवेदनशील साहित्यकार उसे अपना माध्यम बनाता है। राजस्थानी को भी अनेक समर्थ साहित्यकारों ने अपनी अभिव्यञ्जना का माध्यम बनाया है। कुछ वर्षों पहले तक राजस्थानी को केवल एक बोली ही समझा जाता था, पर ज्यों-ज्यों राजस्थानी साहित्य प्रकाश में आ रहा है त्यों-त्यों लोग इसके महत्त्व को समझने लगे हैं। अब इसे एक भाषा-प्रतिष्ठा मिलना भी कठिन नहीं है। तेरापंथ का राजस्थानी से गहरा सम्बन्ध-सम्पर्क रहा है। माद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु से लेकर आज तक विपुल साहित्य लिखा गया है। पहले यह साहित्य लोक-लोचन के सामने नहीं था । इन कुछ वर्षों में इस दिशा में कुछ कार्य हुआ है : ज्यों-ज्यों विद्वान् इससे परिचित होते जा रहे हैं, त्यों-त्यों न केवल तेरापंथ का गौरव बढ़ा है, अपितु राजस्थानी भाषा के बारे में नई धारणाएँ बनने लगी हैं । राजस्थानी की समृद्धि में अनेक लोगों का सहयोग रहा है, उसमें तेरापंथ का सहयोग भी उल्लेखनीय माना जाने लगा है। तेरापंथ के साहित्य को प्रकाश में लाने की दिशा में अभी तक नियोजन प्रयत्न नहीं हुआ । कुछ साहित्य प्रकाश में आया, उस पर कुछ संगोष्ठियाँ भी आयोजित हुई। इससे तेरापंथ के वाङमय के सुसम्पादन की एक महत्त्वाकांक्षी परिकल्पना परिस्फुरित हुई है। उस पर काम भी शुरू हो गया है । जब यह पूरा काम सामने आयेगा तब निःसंदेह पता लगेगा कि तेरापंथ धर्म-संघ ने राजस्थानी भाषा की कितनी सेवा की है। पिछले वर्ष (१८-२० अक्टूबर ९२) 'तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान' विषय पर एक संगोष्ठी जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्व विद्यालय ने आयोजित की थी । उसमें अनेक विद्वानों ने भाग लिया। अनेक सार्थक चर्चाएं हुईं । यह अच्छा हुआ कि संगोष्ठी में पठित निबंधों को पुस्तकाकार संजो लिया गया। इससे भी कुछ बाते लोगों की समझ में आयेंगी, ऐसा विश्वास है। ३१. १०. ९३ नाहर भवन; राजलदेसर आचार्य तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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