Book Title: Tattvopapplavasinha
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 6
________________ इतिहास हमें चार्वाकके खास जुदे आचारोंके बारेमें कुछ भी नहीं कहता । यद्यपि अन्य ' संप्रदायोंके विद्वानोंने चार्वाक मतका निरूपण करते हुए, उसके अभिमत रूपसे कुछ नीतिविहीन आचारोंका निर्देश अवश्य किया है; पर इतने परसे हम यह नहीं कह सकते कि चार्वाकके अभिमतरूपसे, अन्यपरम्पराके विद्वानोंके द्वारा वर्णन किये गए वे आचार, चार्वाक परम्परामें भी कर्तव्यरूपसे प्रतिपादन किये जाते होंगे। चार्वाक दर्शनकी तात्त्विक मान्यता दर्शानेवाले बार्हस्पत्यके नामसे कुछ सूत्र या वाक्य हमें बहुत पुराने समयके मिलते हैं। पर हमें ऐसा कोई वाक्य या सूत्र नहीं मिलता जो बार्हस्पत्य नामके साथ उद्धृत हो और जिसमें चार्वाक मान्यताके किसी न किसी प्रकार के प्राचारोंका वर्णन हो । खुद बाईस्पत्य वाक्योंके द्वारा चार्वाकके प्राचारोंका पता हमें न चलें तब तक, अन्य द्वारा किये गए वर्णनमात्रसे, हम यह निश्चित नतीजा नहीं निकाल सकते कि अमुक अाचार ही चार्वाकका है । वाममार्गीय परंपराश्रोमें या तान्त्रिक एवं कापालिक परम्पराओंमें प्रचलित या माने जानेवाले अनेक विधि-निषेधमुक्त । श्राचारोंका पता हमें कितनेएक तान्त्रिक आदि ग्रन्थोंसे चलता है । पर वे आचार चार्वाक मान्यताको भी मान्य होंगे इस बातका निर्णायक प्रमाण हमारे पास कोई नहीं । ऐसी दशामें जयराशिको. चार्वाक संप्रदायका अनुगामी मानते हुए भी, निर्विवाद रूपसे हम उसे सिर्फ बुद्धिसे ही चार्वाक परम्पराका अनुगामी १. “पिर खाद च चारुलोचने यदतीतं वरगात्रि तन्नते । नहि भीरु गतं निवर्तते समुदयमात्रमिदं कलेवरम् ॥ साध्यवृत्तिनिवृत्तिभ्यां या प्रीतिर्जायते जने । निरर्था सा मते तेषां धर्मः कामात् परो न हि ॥" -षडद० का० ८२, ८६ । 'प्रायेण सर्वप्राणिनस्तावत् यावजीवं सुखं जीवेन्नास्ति मृत्योरगोचरः। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥ 'इति लोकगाथामनुरुन्धाना नीतिकामशास्त्रानुसारेणार्थकामावेव पुरुषार्थों मन्यमानाः पारलौकिकमर्थमपहृवानाचार्वाकमतमनुवर्तमाना एवानुभूयन्ते ।'सर्वदर्शनसंग्रह, पृ० २। २. इस विषयके जिज्ञासुओंको आगमप्रकाश नामकी गुजराती पुस्तक देखने योग्य है जिसमें लेखकने तान्त्रिक ग्रन्थोंका हवाला देकर वाममार्गीय अाचारोंका निरूपण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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