Book Title: Tattvopapplavasinha
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ से आगे नहीं जा सकती, दूसरी तरफ, ई० स०८१० से ८७५ तकमें संभवित जैन विद्वान् विद्यानन्दने तत्त्वोपप्लवका केवल नाम ही नहीं लिया है बल्कि उसके अनेक भाग ज्योंके त्यों अपनी कृतियोंमें उद्धृत किये हैं और उनका खण्डन भी किया है । पर साथमें इस जगह यह भी ध्यान में रखना चाहिए, कि ई. स० की आठवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें होनेवाले या जीवित ऐसे अकलंक, हरिभद्र श्रादि किसी जैन विद्वान्का तरवोपप्लवमें कोई निर्देश नहीं है, और न उन विद्वानोंकी कृतियों में ही तच्चोपप्लवका वैसा कोई सूचन है । इसी तरह, ई० स. की नवीं शताब्दीके प्रारम्भमें होनेवाले प्रसिद्ध शंकराचार्यका भी कोई सूचन तत्त्वोपप्लवमें नहीं है। तत्वोपप्लव में आया हुआ वेदान्तका खण्डन' प्राचीन औपनिषदिक संप्रदायका ही खण्डन जान पड़ता है। इन सब बातोपर विचार करनेसे इस समय हमारी धारणा ऐसी बनती है कि जयराशि ई०स० ७२५ तकमें कभी हुआ है। ___यहाँ एक बात पर विशेष विचार करना प्रास होता है, और वह यह है, कि तत्त्वोपप्लवमें एक पद्य ' ऐसा मिलता है जो शान्तरक्षितके तत्त्वसंग्रहमें मौजूद है। पर वहाँ, वह कुमारिलके नामके साथ उद्धत किये जाने पर भी, उपलभ्य कुमारिलकी किसी कृति में प्राप्य नहीं है। अगर तत्त्वोपप्लवमें उद्धृत किया हुअा वह पद्य, सचमुच तत्त्वसंग्रहमेंसे ही लिया गया है, विस्तारसे किया है (पृ० १८)। धर्मकीतिके प्रमाणवार्तिककी कुछ कारिकाएँ और न्यायबिन्दुका एक सूत्र तत्वोपप्लवमें उद्धृत हैं (पृ० २८, ५१, ४५, इत्यादि तथा पृ० ३२)। धर्मकीर्तिके टीकाकारोंका नामोल्लेख तो नहीं मिलता किन्तु धर्मकीर्तिके किसी ग्रन्थकी कारिकाकी, जो टीका किसीने की होगी उसका खण्डन तस्वोपप्लवमें उपलब्ध है--पृ०६८ । १. 'कथं प्रमाणस्य प्रामाण्यम् ? किमदुष्टकारकसन्दोहोत्पाद्यत्वेन, बाधारहितत्वेन, प्रवृत्तिसामर्थेन, अन्यथा वा ? यद्यदुष्टकारकसन्दोहोत्पाद्यत्वेन सदा....' इत्यादि अष्टसहस्रीगत पाठ (अष्टसहस्री पृ० ३८) तत्त्वोपप्लवमेंसे (पृ० २) शब्दशः लिया गया है। और आगे चलकर अष्टसहस्त्रीकारने तत्वोपप्लवके उन वाक्योंका एक-एक करके खण्डन भी किया है-देखो, श्रष्टसहस्त्री पृ० ४० ।। २. देखो, तत्त्वोपप्लव पृ० ८१ । ३, “दोषाः सन्ति न सन्तीति" इत्यादि, तत्त्वो० पृ० ११६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31